Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 154
________________ Tirthaņkaras in Bharat, region and five Tirthaņkaras in Airāwata region. The total number of Tirthaņkaras, in this way come to be one hundred seventy (160 +5+ 5 = 170). अस्यामवसर्पिण्यां, वृषभजिनः प्रथमतीर्थकर्ता भर्ता। अष्टापदगिरिमस्तक, गतस्थितो मुक्तिमाप पापान्मुक्त।। 29 ।। (अस्याम् अवसर्पिण्याम) इस अवसर्पिणी काल में (प्रथम तीर्थकर्ता) तीर्थ के आदि कर्ता प्रथम तीर्थंकर (वृषभजिनः स्वामी) वृषभनाथ स्वामी (कर्ता-भर्ता) असि-मसि-कृषि-शिल्प-वाणिज्य और कला इन छः कर्मों के उपदेशकर्ता व जनता के पोषक थे। (अष्टापद-गिरिमस्तक गत-स्थितः पापात् मुक्तः) कैलाश पर्वत के शिखर पर पद्मासन से स्थित हो पापों से छूटकर (मुक्तिम् आप) मोक्ष को प्राप्त हुए। Eulogy of lord Risabh deva - In this Awasharpini, first and formost Tirthaņkara, creator of tirth, who preached about the six activities named sword (asi), ink (masi), agriculture (brisi), craft (shilp), commerce (vanijya), and art (kala) and who was the great helper/supporter of his subject. He attained salvation after destroying all karmas on the top of mount, Kailasha seated in Padmāsana (sitting postuse). श्रीवासुपूज्यभगवान् शिवासु, पूजासु पूजितस्त्रिदशानाम्। चम्पायां दुरित-हरः, परमपदं प्रापदापदा-मन्तगतः।। 30।। (शिवासु पूजासु) शोभा को प्राप्त, कल्याणकारी पंचकल्याणक रूप पूजाओं में (त्रिदशानां पूजितः) इन्द्रों व देवों से पूजा को प्राप्त, (श्रीवासुपज्य भगवान्) अन्तरंग बहिरंग लक्षमी के स्वामी वासुपूज्य भगवान् (आपदाम् अन्तगतः) विपत्तियों के अन्त को प्राप्त हो, (दुतिहरः) पापों का क्षय करते हुए (चम्पायाम्) चम्पापुरी में मन्दारगिरी पर्वत से (परमपदं प्रापत्) परम पद/मुक्त अवस्था को प्राप्त हुए। Eulogy of Lord Bānsupujya - Bhagwān Bānsupujya extremely glamourous, beneficial to all, worshiped by lords of celestial beings and other gods in course of their five kalyānakas ceremony, lord of internal and external riches attained salvation on the holy mountain "Mandāra giri" of 152 • Gems of Jaina Wisdom-IX

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