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गन्धकुटी-गर्भग्रह में स्थित सिंहासनों से सुन्दर तथा (विविध - विभव - युतानि) नाना प्रकार के वैभव से सहित (ईश्वरेशिनां) जिनेन्द्र देव के (हिरण्यमयानि तानि भवनानि) स्वर्णमय वे जिन भवन / अकृत्रिम चैत्यालय (नित्य प्रविभाजन्ते ) नित्य ही प्रकृष्ट शोभा को प्राप्त होते हैं ।
The glories of the chaityalayas of Nandiswara island-The natural golden chaityalayas of Nandiswara island in whose central rooms are installed on the thrones made of gems placed on Gandha kutis adorned with divine umbrellas, whiskers and many other glories exist and ever seather divine lustre. All these chaityalayas/temples of Jinas are magnificient because of fine arches, alters, forests, gardens, chaityatree, the pillars of pride (maanstambhas) ten rows of fluttering flags, four gopuras in each one of three compound walls, three fine halls and grand mandapas. Further these chaityalayas also contain mandap which are used by gods assembled there for viewing/ beholding the bathing ceremony of Jinas, places for sports, places alloted for musical performances and theatrical halls. These chaityalayas also contain water reservoirs having beautiful bloosomed lotus flowers, eight auspicious objects such as jhari, mirrors, pitcher etc. (The number of each one being 108) and bells ringing melodeous sounds of 'jhana jhana'.
येषु - जिनानां प्रतिमाः पञ्चशत- शरासनोच्छिताः सत्प्रतिमाः । मणिकनक - रजतविकृता, दिनकरकोटि- प्रभाधिक - प्रभदेहाः । । 26 || तानि सदा वंदेऽहं भानुप्रतिमानि यानि कानि च तानि । यशमां महसां प्रतिदिश-मतिशय - शोभा - विभाञ्जि पापविमाञ्जि ।। 27 ।।
( येषु) जिन अकृत्रिम जिनालयों में (जिनानां प्रतिमाः) जिनेन्द्र देव की प्रतिमाएं (पञ्चशतशरासन - उच्छ्रिताः) ५०० धनुष ऊँची हैं, (सत्प्रतिमाः) सुन्दर, समीचीन आकार वाली, अत्यन्त मनोहर (मणिकनक- रजत - विकृता) मणि-स्वर्ण-चाँदी से बनी हुई हैं तथा (दिनकर-कोटि- प्रभाधिक - प्रभदेहाः) करोड़ों सूर्यों की प्रभा से भी अधिक प्रभा वाले शरीर युक्त हैं ( तानि) उन जिनेन्द्र भवनों, जिनालयों को (अहं सदा वन्दे ) मैं सदा नमस्कार करता हूँ। इसके साथ ही (प्रतिदिशं) प्रत्येक दिशा में (यशमां महसां )
150 Gems of Jaina Wisdom-IX