Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 151
________________ the idols installed there in. At last all the lords of celestial beings and the gods accompanying them go back to their respeetive places (dwellings) after attaining the virtuous karmas consiquent there upon. सहतोरणसद्वेदी-परीतवनयाग-वृक्ष-मानस्तम्भः। ध्वजपंक्तिदशकगोपुर, चतुष्टयत्रितय-शाल-मण्डल-वयैः ।। 21 ।। अभिषेकप्रेक्षणिका, क्रीडनसंगीतनाटकालोकगृहै। शिल्पिविकल्पित-कल्पन-सकल्पातीत-कल्पनैः समुपेतैः।। 2211 वापी सत्पुष्करिणी, सुदीघिकाद्यम्बुसंसृतैः, समुपेतैः। विकसितजलरुहकुसुमै-र्नभस्यमानैः शशिग्रहक्षैः शरदि।। 23 || गाराब्दक-कलशा, धुपकरणरष्टशतक-परिसंख्यौः। प्रत्येकं चित्रगणैः, कृतझणझणनिनद-वितत-घंटाजालैः ।। 24।। प्रविभाजंते नित्यं, हिरण्यानीश्चरेशिनां भवनानि। गंधकुटीगतमृगपति, विष्टर-रुचिराणि-विविध-विभव-युतानि ।। 25 ।। वेअक्रत्रिम चैत्यालय(सहतोरण-सवेदी-परीतवन-यागवृक्षमानस्तम्भ-ध्वजपंक्ति-दशक-गोपुर-चतुष्टय-त्रितयशाल मण्डपवर्यैः) अकृत्रिम तोरणों से, चारों ओर रहने वाले वनों से, यागवृक्षों से, मानस्तम्भों से, दस-दस प्रकार की ध्वजाओं की पंक्त्यिों से, चार-चार गोपुरों से, तीन परिधियों वाले श्रेष्ट मण्डपों से (शिल्पिविकल्पित-कल्पन-संकल्पातीत-कल्पनैः) चतुर शिल्पियों से कल्पित संकल्पातीत रचनाओं से (समुपे तैः) सहित (अभिषेक-प्रेक्षणिका-क्रीडन-संगीत-नाटक-आलोकगृहै:) अभिषेक-दर्शन, क्रीड़ा, संगीत और नाटक देखने के गृहों से, (विकसित-जलरुह-कुसुमैः शरदि) खिले हुए कमल पुष्पों के कारण शरद ऋतु में (शशि-ग्रह-ऋक्षैः) चन्द्रमा, गृह तथा ताराओं से, (नभस्यामानैः) आकाश के समान दिखने वाले (वापीसत्पुष्करिणी-सुदीर्घिका-आदि-अम्बुसंश्रयैः) वापिका, पुष्कारिणी तथा सुन्दर दीर्घिका-आदि जलाशयों से, (समुपेतैः) प्राप्त (प्रत्येक अष्टशत परिसंख्यानैः) प्रत्येक एक सौ आठ, एक सौ आठ संख्या वाले (भृग्झराब्दक- कलशादि-उपकरणैः) झारी, दर्पण तथा कलश आदि उपकरणों से और (चित्रगुणैः) आश्चर्यकारी गुणों से युक्त (कृत झणझणनिनद- वितत-घण्टाजालैः) झण-झर्ण शब्द करते हुए घंटाओं के समूहों से, (गन्धकुटीगत मृगपति विष्टर रुचिराणि) Gems of Jaina Wisdom-IX – 149

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