Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 132
________________ last right or the right of winning. Besides they worshipped Ganadharas also. In the end all the gods essembled there, went to their respective celestial palaces, skyes, forests and mansions. Note - In other words, gods living in kalpās went to their respective kalpās/celestial palaces, stellar gods went to their respective skyes, perapetatic went to forests and mansion dwellers went to their respective mansions. इत्येवं भगवति वर्धमान चन्द्रे, यः स्रोतं पठति सुसंध्ययोर्द्वयोर्हि। सोऽनन्तं परमसुखं नृदेवलोके, भुक्तवन्ते शिवपदमक्षयं प्रयाति।। 20।। (इति एवं) इस प्रकार (भगवति वर्धमान चन्द्रे) भगवान महावीर से सम्बन्धित (स्रोत) स्रोत को (यः) जो (द्वयोः हि) दोनों ही (सुसन्ध्ययोः पठति) सन्ध्याओं से पढ़ता है; (सः) वह (नृ-देव-लोके) मनुष्य और देव लोक में (अक्षयं-अनन्तं-शिवपद) अविनाशी, शाश्वत ऐसे मोक्ष पद को (प्रयाति) प्राप्त करता है। The mundane soul who recites this eulogy relating to lord Mahāvira two times a day i.e. at morning and evening, enjoys excellent sense pleasuses in human grade and celestial grade and attains indestructible eternal bliss of salvation in the end. यत्रार्हतां गणभृतां श्रुतपारगाणां, निर्वाणभूमिरिह भारतवर्षजानाम्। तामद्य शुद्धमनसा क्रियया वचोमिः, संस्तोतुमुद्यतमतिः परिणौमि भक्तया। 21 ।। (इह) यहाँ जम्बूद्वीप में (यत्र) जहाँ (भारतवर्षजानाम्) भारत देश में उत्पन्न (अर्हता, गणभृतां, श्रुतपरगाणां निर्वाणीभूमिः) अर्हन्तों, तीर्थंकरों की, गणधरों और श्रुत के पारगामी-श्रुतकेवली की निर्वाणभूमि है; (संस्तोतुम् उद्यत-मतिः) उन भूमियों की सम्यक् प्रकार स्तुति करने के लिये तत्पर बुद्धि वाला हुआ मैं (भक्त्या) भक्तिपूर्वक (ताम्) उनको 130 • Gems of Jaina Wisdom-IX

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