Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 136
________________ माल्यानि वाक्स्तुतिमयैः कुसुमैः सुदृब्धान्यादाय मानसकरैरभितः किरन्तः । पर्येम आदृतियुता भगवन्निषद्याः, संमप्रार्थिता वयमिमे परमां गतिं ताः ।। 27 ।। (वाक् स्तुतिमयैः कुसुमैः) वचनों के स्तुतिमय पुष्पों के द्वारा (सुदृब्धानि माल्यानि) गूँथी हुई सुन्दर मालाओं को (मानसकरैः आदाय) मन रूपी हाथों के द्वारा ग्रहण करके, (अभितः) चारों ओर (किरन्तः) बिखरते हुए (इमे) ये (वयम् ) हम ( भगवन् निषद्याः आतियुता पयेंम) भगवन्तों की निर्वाण भूमियों की आदर सहित परिक्रमा / प्रदक्षिणा करते हैं तथा (ताः परमां गतिं सम्प्रार्थिता) उनसे उत्तम सिद्धभूमि, सिद्धगति की प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं । Be respectfully take rounds of these holy places of salvation having in (our) hands consisting of mind the garlands made of flowers of the words of adorations and scattering them in all the four sides. Besides be there by humbly request them to bless us with award of salvation. शत्रुञ्जये नगवरे दमितारिपक्षाः, पण्डोः सुताः परमनिर्वृतिमभ्युपेताः । तुंग्यां तु संगरहितो बलभद्रनामा, नद्यास्तटे जिनरिपुश्च सुवर्णभद्रः ।। 28 ।। द्रोणीमति प्रबलकुण्डल मेद्रके च, वैभारपर्वततले वरसिद्धकूटे । ऋष्यद्रिके च विपुलाद्विबलाहके च, विन्ध्ये च पोदनपुरे वृषदीपके च ।। 29 ।। सह्याचले च हिमवत्यापि सुप्रतिष्ठे, दण्डात्मके गजपथे पृथुसारयष्टौ । ये साधवों हतमलाः सुगतिं प्रयाताः, स्थानानि तानि जगति प्रथितान्य भूवन | 30 ।। (दमित अरिपक्षाः पण्डोः सुताः) शत्रु पक्ष को नष्ट करने वाले पाण्डुपुत्र पाण्डव (शत्रुञये नगवरे परमनिर्वृत्तिम् - अभ्युपेताः) शत्रुंजय नामक श्रेष्ठ पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त हुए। (संग रहितः बलभद्र-नामा 134 Gems of Jaina Wisdom-IX

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