Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 138
________________ (यद्वत) जिस प्रकार (लोके) लोक में (इक्षोः विकार रसपृक्त गुणेन) ईख के गन्ने के रस से निर्मित मिष्ट, शक्कर या गुड़ से मिश्रित (पिष्टः) आटा (अधिकं मधुरताम्) अधिक मधुरता को (उपयाति) प्राप्त हो जाता है; (तद्वत च) उसी प्रकार (पुण्यपुरुषैः उषितानि) पुण्य पुरूषों/महापुरुषों से आश्रित (तानि स्थानानि) वे स्थान (इह जगतां नित्यं पावनानि) इस पृथ्वी तल को, इस संसार को सदैव पवित्र करने वाले होते हैं। Just as the flour (of wheat etc.) becomes sweet by getting mixed with juice of suger cane, in the same way the places where sacred persons dwell/stay become sacred/consecrated for ever. इत्यर्हतां शमवतां च महामुनीनां, प्रोक्ता मयात्र परिनिर्वृति भूमि देशाः। तेमे जिना जितभया मुनयश्च शांताः, दिश्यासुराशु सुगतिं निरवद्यसौख्याम् ।। 32।। (इति) इस प्रकार (मया) मेरे द्वारा (अत्र) यहाँ-इस निर्वाणभक्ति स्तोत में (अर्हतां शमवता । च महामुनीनां) तीर्थंकर जिन, और साम्यभाव को प्राप्त महामुनियों के (परिनिर्वृत्ति भूमिदेशाः प्रोक्ताः) निर्वाण-स्थलों को कहा गया; (ते जितभयाः जिनाः शान्ताःमनुयः च) वे सप्तभयों को जीतने वाले तीर्थंकर जिन और शान्त अवस्था प्राप्त मुनिराज (मे) मेरे लिये (आशु) शीघ्र (निरवद्यसौख्यम् सुगतिं दिष्यासुः) निर्दोष सुख से युक्त, उत्तम मोक्षगति को प्रदान करने वाले हों। I have here at described the places of salvation of pure and perfect souls with body (Arihantas) and great equanimous saints. May those Jinas who conquered all the seven kinds of fears and completely pacified calm and quit saints - bless me the supreme status of salvation, which is full of flaw less eternal bliss. क्षेपक श्लोकानि (Insertions) कैलाशाद्रौ मुनीन्द्रः पुरूरपदुरितो मुक्तिमाप प्रणूतः । चंपायां वासुपूज्यस्त्रिदशपतिनुतो नेमिप्यूर्जयते।। 1।। 136 • Gems of Jaina Wisdom-IX

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