Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 137
________________ तु तग्यां) समस्त परिग्रह से रहित बलभद्र मुनि तुंगीगिरी से तथा (जिपरिपुः सुवर्णभद्रः) कर्म शत्रुओं को जीतने वाले मुनि सुवर्णभद्र (नद्याः तटे) नदी के किनारे से मुक्ति को प्राप्त हुए। (द्रोणीमति) द्रोणगिरी, (प्रवर-कुण्डल-मेद्रक च) प्रकृष्ट कुण्डलगिरी और मेद्रगिरी दूसरा नाम मुक्तागिरी (वैभार-पर्वततले) वैभारपर्वत के तलभाग में (वर-सिद्धकूटे) उत्कृष्ट सिद्धकूट-सिद्धवरकूट में, (ऋषि-अद्रिके) ऋषि याने श्रमणों का पर्वत श्रमणगिरी-सोनागिरी, (विपुलाद्रि-बलाहके च) विपुलाचल व बलाहक पर्वत, (विन्ध्ये) विन्ध्याचल में (वृषदीपके पौदनपुरे च) और धर्म को प्रकाशित करने वाले पोदनपुर में। __(सह्याचले) सह्य पर्वत, (सुप्रतिष्ठे हिमवति अपि) अति प्रसिद्ध हिमालय पर्वत, (दण्डात्मके गजपथे पृथुसारयष्टौ) दण्डाकार गजपंथा और वंशस्थ पर्वत पर (ये साधवः) जो साधु (हतमलाः) कर्मों का क्षय कर (सुगतिं प्रयाताः) उत्तम सिद्धगति को प्राप्त हुए हैं; (जगति) संसार में (तानि स्थानानि) वे सभी स्थान (प्रथितानि अभूवन) प्रसिद्ध हुए। The sons of pandu who annihilated their enemies attained salvation on the superior mount Satrunjaya - the possessionless muni Balbhadra attained salvation on mount Tungygiri and muni Suvarnabhadra, the conquerer of his karmic enemiesattained salvation on the bank of river Chelana. The holy places named Dronagiri, promiment Kundalgiri, Medh giri (muktāgiri), Siddhavarkoot-situated in the low lying land of mount Baibhar, Shraman giri – the mountain of shramanas, Vipulāchal and Balāhak mount, mt. Vindhyāchal and Podanpur that cause the manifestation of true religion. Mount Sahya, most reputed mount Himalaya, mount Gajapanthā-strait like a pole and mount Vaņsasthal became most reputed in world, because these are holy places where at great digambar Jain saints attained salvation after completely destroying their karmas. इक्षोर्विकार रसपृक्त गुणेन लोके, पिष्टोऽधिकं मधुरतामुपयाति यद्वत्। तद्वच्च पुण्यपुरूष-रूषितानि नित्यं......... स्थानानि तानि जगतामिह पावनानि ।।31 ।। Gems of Jaina Wisdom-IX 135

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