Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 139
________________ पावायां वर्धमानस्त्रिभुवनगुरवो विंशतिस्तीर्थनाथाः । सम्मेदाग्रे प्रजग्मुर्ददतु विनमतां निवृत्तिं नो जिनेन्द्राः।। 2।। (अपदुरितः) पापों से मुक्त, (प्रणूतः) नमस्कार को प्राप्त, (मुनीन्द्रः पुरु) मुनियों के स्वामी पुरूदेव-ऋषभनाथ स्वामी (कैलाशाद्री) कैलाश पर्वत पर (मुक्तिम् आप) मुक्ति को पधारे। (त्रिदशपतिनुतः वासुपूज्य चंपायां) इन्द्रों के द्वारा नमस्कृत वासुपूज्य भगवान् चम्पापुर से मोक्ष पधारे। (नेमिः अपि ऊर्जयन्ते) श्री नेमिनाथ भगवान् ऊर्जयन्त-गिरनार पर्वत से मोक्ष पधारे। (पावायां वर्धमानः) श्री वर्धमान स्वामी पावापुरी से मुक्त हुए तथा (त्रिभुवनगुरवः विंशतिः तीर्थनाथाः) तीन लोकों के गुरु शेष २० तीर्थंकर (सम्मेदाग्र प्रजग्मुः) सम्मेदाचल-सम्मेदशिखर से मुक्ति को प्राप्त हुए। (जिनेन्द्राः) ये सभी २४ तीर्थंकर भगवान (विनमतां नः) नमस्कार करने वाले हम सबको (निवृत्तं ददतु) निर्वाण पद देवें। Lord shri Risabh deva who is free from wrongs, well revered, (well venerated) by lords of great digambar saints, attained salvation from mount Kailash, Lord Bāsupoojya - worshipped by Lords of gods-attained salvation from Champāpur. shri Lord Nemināth attained salvation from Mount Urjayant (Girnār). shri Vardhamaan swāmi attained salvation from Pāwāpur and the rest twenty Tirthankaras supreme instructor/masters/preceptors of all the three universes-attained salvation from Sammedachal/Sammedsikhar. May all these Tirthaņkaras bless all of us with the supreme status of salvation. गोर्गजोश्वः कपिः कोकः सरोजः स्वस्तिकः शशी। मकरः श्रीयुतो वृक्षो गंडो महिष सूकरौ।। 3।। सेधा वजमृगच्छागाः पाठीनः कलशस्तथा। कच्छपच्योत्पलं शंखो नागराजश्व केसरी।। 4।। (गोः गजः अश्रः) बैल, हाथी, घोड़ा, (कपिः कोकः सरोजः स्वस्तिकः शशी) बन्दर, चकवा, कमल, साथिया, चन्द्रमा (मकरः मगर (श्रीयुतः वृक्ष) कल्पवृक्ष (गण्डः महिष-शूकरौ) गेंडा, भैंसा, सुअर (सेधा-वज्र-मृगच्छागाः) सेही, वज्र, हिरण, बकरा (पाठीनः Gems of Jaina Wisdom-IX 137

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