Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 144
________________ Description of the natural chaityālayast temples of Jinas in the mansions of mansion dweller gods – The total number of excessive lusterous chaityālayas in the mansions of mansion dweller gods is seven crore seventy two lacs. त्रिभुवन-भूत-विभूना, संख्यातीतान्यसंख्य-गुण-युक्तानि। त्रिभुवन-जन-नयन मनः, प्रियाणिभवनानि भौम-विबुध-नुतानि ।। 4।। (असंख्य गुण-युक्तानि) असंख्यात गुणों से युक्त, (त्रिभुवनजन-नयन-मनःप्रियाणी) तीन लोक सम्बन्धी जीवों के नेत्र व मन को प्रिय, (भौम-विबुध-नुतानि) व्यन्तर देवों के द्वारा नमस्कृत, (त्रिभुवन-भूतविभूनाम) तीनों लोक के समस्त प्राणियों के नाथ/स्वामी/विभु श्री जिनेन्द्र देव के (भवनानि) अकृत्रिम चैत्यालय (संख्या-अतीतानि) संख्यातीत-असंख्यात हैं। Description of the natural chaityālayas of perapetatic gods- The total number of the natural chaityālayas of the Jinas, which have got innumerable qualities, which are pleasing to the eyes, minds and hearts of the living beings of all the three universes, which are bowed down and saluted by all perapetatic gods and who are the lords of all the living beings of three universes, is innumerable. यावन्ति सन्ति कान्त-ज्योति-र्लोकाधिदेवताभिनुतानि। कल्पेऽनेक-विकल्पे, कल्पातीतेऽहमिन्द्र-कल्पानल्पे।। 5।। विंशतिरस्थ त्रिसहिता, सहस्त्र-गुणिता च सप्तनवतिः प्रोक्ता। चतुरधिकाशीतिरतः, पञ्चक-शून्येन विनिहतान्यनघानि।। 6 ।। (यावनित सन्ति) ज्योतिषी देवों के जितने विमान हैं, उतने ही उनके विमानों में अकृत्रिम चैत्यालय हैं, और वे सब चैत्यालय (कान्तज्योतिर्लोकअधिदेवता-अभिनुतानि) ज्योतिर्लोक के सुन्दर अधिदेवताओं के द्वारा नमस्कार को, स्तुति को प्राप्त हैं। (अनेक-विकल्पे-कल्पे) अनेक भेद वाले कल्पों-कल्पवासी देवों के सोलह स्वर्गों में (अहमिन्द्र कल्पे) अहमिन्द्रों की कल्पना वालों में व (अनल्पे) विस्तार को प्राप्त (कल्पातीते) कल्पातीत देवों-नौ ग्रैवेयकों, नौ अनुदिशों और पाँच अनुत्तर विमानों में (अनघानि)-पापों से मुक्त 142 • Gems of Jaina wisdom-IX

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