Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 146
________________ नव-नव-चतुःशतानि च, सप्त च नवतिः सहस्र-गुणिताः षट् च। पञ्चाशत्पञ्च-वियत् प्रहताः पुनरत्र कोटयाऽष्टौ प्रोक्ताः।। 8।। एतावन्त्येव सता-मकृत्रि-माण्यथ जिनेशिनां भवनानि। भुवन-त्रितये-त्रिभुवन-सुर-समिति-समय॑तान-सत्प्रतिमानि।। ।। तीनों लोकों में (त्रिभुवन-सुर समिति-समर्व्यमान-सत्प्रतिमानि) तीनों लोकों के देवों के द्वारा पूजा की जाने वाली वीतराग प्रतिमाएं, (सतां जिनेशिना) वीतराग जिनेन्द्र के (अकृत्रिमाणि अथ भवनानि) अकृत्रिम जिनालय (नव नव) नौ से गुणित नौ अर्थात् EXE= ८१ (चतुः शतानि च) चार सौ अर्थात् ४८१ (सहस्रगुणिताः सप्तनवतिः च) और हजार से गुणित संतानवे अर्थात् संतानवे हजार (पञ्चवियत् प्रहताः षट्च पञ्चाशत) और पाँच शून्यो से गुणित छप्पन अर्थात ५६००००० छप्पन लाख (पुनः अत्र अष्टो कोटयः) पुनः आठ करोड़ अर्थात् ८ करोड़ ५६ लाख ६७ हजार ४८१ (एतावन्ति एव प्रोक्ताः ) इतने ही कहे गये हैं। The number of natural chaityālayas and natural idols of Jinas of all the three universes- The total number of the idols/ images and natural chaityālayas of non-attached gods which are worshipped by the gods of all the three universes is - 9x9 = 81 81+400 =481 1000x97 = 97000 100000x56 = 56 lacs Grand total = 8 crore 56 lacs, 87 thousand 04 hundred and eighty one only (85687481). The numbers of idols/images of Jinas in these chaityālayas is 925 crores, 53 lacs, 27 thousand, 09 hundred and forty eight (9255327948). I here by pay my respectful obeisance to all these natural idols of Jinas. वक्षार-रूचक-कुण्डल-रौप्य-नगोत्तर-कुलेषुकारनगेषु। कुरुषु च जिनभवनानि, त्रिशतान्यधिकानि तानि षड्विंशत्या।। 10।। (वक्षार-रूचक-कुण्डल-रौप्यनग-उत्तर-कुल-इषुकार-नगेषु) वक्षारगिरी, रुचकगिरि, कुण्डलगिरी, रजताचल/विजयार्ध, मानुषोत्तर, कुलाचल और इष्वाकार पर्वतों पर (च) तथा (कुरुष) देवकुरु-उत्तरकुरु में (षड्विंशत्या अधिकानि त्रिशतानि तानि जिनभवनानि) वे अकृत्रिम चैत्यालय छब्बीस अधिक तीन सौ-३२६ हैं। 144 Gems of Jaina Wisdom-IX

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