Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 134
________________ अन्य लिंगधारियों के द्वारा भी (यत् शिवम् प्रार्थ्यते) जिस मोक्ष की इच्छा/प्रार्थना की जाती है; (तत्) उस मोक्ष को (अयं अरिष्टनेमिः) इन अरिष्टनेमि-नेमिनाथ भगवान ने (नष्ट-अष्ट-कर्म समये) अष्ट कर्मों का क्षय करते ही, अयोगी गुणस्थान के अन्त समय में (वृहत्-उर्जयन्ते क्षितिधरे) गिरनार/ उर्जयन्त नामक विशाल पर्वतराज पर (संप्राप्तवान) समीचीन रूप से प्राप्त किया। Lord Aristanemi attained salvation the supreme status which is covated by celestial beings, lords of celestial beings and such seekers of salvation, who do not adopt digambaratava/possessionlessness - just after the destruction of his all the eight karmas at the last time point of the fourteenth state of virtues named ayoga kewali on great mount named Urjayanta/girnār. पावापुरस्य बहिरुन्नत भूमिदेशे, पद्मोत्पलाकुलवंता सरसां हि मध्ये। श्री वर्धमान जिनदेव इति प्रतीतो, निर्वाणमाप भगवान्प्रविधूतपाम्मा।।24।। पावापुरस्य बहिः) पावापुर के बाहर (पद्य-उत्पला-कुलवतां) कमल व कुमुदों से व्याप्त/भरे हुए (सरसां हि मध्ये) तालाब के बीच में ही (उन्नतभूमिदेशें) ऊँचे भूमि प्रदेश पर (श्रीवर्धमान-जिननेद इति प्रतीतो भगवान्) श्री वर्धमान इस नाम से प्रसिद्ध भगवान् ने (प्रविधूतपाम्मा निर्वाणमाप) समस्त पापों का क्षय करके मुक्त अवस्था की प्राप्ति की। Lord Vardhamaan, after completely destroying all sins, attained the state of salvation standing at a higher piece of land existing in the midst of a beautiful water reservoir adorned with flagrant lotuses and lilies on the outer periphery of the city named Paawāpur. शेषास्तु ते जिनवरा जितमोहमल्ला, ज्ञानार्क भूरि किरणैरवभास्य लोकान्। स्थानां परं निरवधारित सौख्यनिष्ठं, सम्मेद पर्वततले समवापुरीशाः।। 25 ।। 132 Gems of Jaina Wisdom-IX

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