Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 129
________________ वैशाखसितदशम्यां हस्तोत्तरमध्यमाश्रिते चन्दे | क्षपक श्रेण्यारूढस्यो त्पन्नं केवलज्ञानम् ।। 12 ।। (वैशाखसितदशम्यां) वैशाख शुक्ल दसमी, (हस्तोत्तरमध्यमाश्रिते चन्द्रे) जब चन्द्रमा हस्तोत्तर नक्षत्र पर स्थित था, ( क्षपक श्रेण्यारूढस्य उत्पन्नं केवलज्ञानम्) क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ उन वीर भगवान को . केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । Lord Mahavira attained omniscience after ascending of Ksapak shrainy/perfect knowledge on the tenth day of bright fortnight of month of Baisaakh, when the moon appeared in Hastottara nasksatra. अथ भगवान संप्रापद्- दिव्यं वैभारपर्वतं रम्यम् । चातुर्वर्ण्य सुसंघस्तत्राभूद गौतमप्रभृति ।। 13 । । (अथ) केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् (भगवान) ज्ञान से सम्पन्न वीर प्रभु (दिव्यं रम्यं वैभरपर्वतम् सम्प्रात्) विशाल, सुन्दर, मनोज्ञ ऐसे वैभार - विपुलाचल पर्वत पर पधारे; (तत्र) वहाँ ( गौतमप्रभृतिः) गौतम स्वामी आदि को लेकर (चातुर्वर्ण्य संघः अभूत्) चातुर्वर्ण्य मुनि, आर्यिका श्रावक, श्राविका अथवा ऋषि, यति, मुनि व अनगार रूप चार प्रकार का संघ एकत्रित हुआ । After the attainment of omniscience, Lord Mahavira reached the divine and fascinating mount Baibhāra/ Bipulaachal. There at four typed order consisting of monks (muni), females monks, (Aaryikās) house holders (shrāvakas) and house mistresses (shrāvikas) or those of rishi, yati, muni, anagaar inclusive of ganadhar Gautom swāmi assemble. छत्राशोकौ घोषं सिहासन दुंदुभि कुसुमवृष्टिम् । वरचामर भामण्लदिव्यान्यन्यानि चावापत् ।। 14 ।। वहाँ (छत्र - अशोकौ) दिव्य, सुन्दर छत्र, अशोक वृक्ष, (घोषं) दिव्यध्वनि, ( सिंहासन - दुन्दुभी) सिंहासन और दुन्दुभि बाजे (कुसुमवृष्टिं) सुगन्धित सुमनों की वर्षा, (वर - चामर - भामण्डल - दिव्यानि - अनयानि च ) उत्तम चँवर, भामण्डल और अन्य अनेक दिव्य वस्तुओं को आपने (अवापत् ) प्राप्त किया । Gems of Jaina Wisdom - IX + 127

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