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हे भगवन्! मैंने समाधि-भक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया, अब उसकी आलोचना करने की इच्छा करता हूँ। समाधि-भक्ति में रत्नत्रय के प्ररूपक शुद्ध परमात्मा के ध्यान रूप विशुद्ध आत्मा की मैं सदा अर्चा करता हूँ, पूजा करता हूँ, वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ। मेरे दुःखों का क्षय हो, कर्मों का क्षय हो, रत्नत्रय की प्राप्ति हो, सुगति में गमन व समाधिमरण हो तथा वीतराग जिनदेव के महागुण रूपी सम्पत्ति की मुझे प्राप्ति हो।
O lord! I have completed body mortification, regarding “Samādhi bhakti” (devotion to death with equanimity). I do criticise the faults there in regarding it. I always rever, worship, pay obeisance and bow down to pure and perfect soul which incorporates three jewels. May my agonies be eliminated. May my karmas be eliminated, May I attain three jewels, May I attain higher grade of life, May I die in a state of equanimity, May I secure the glories/riches of the attributes of shree Jinendra dev.
122 . Gems of Jaina Wisdom-IX