Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 122
________________ over powers/over wins the goddess of salvation, it destroys the disasters/calamities.of all the four grades of life, It eliminates the sins/vices concerning souls; it stops soul to go in lower grades of life and charms (allures the allurement or inchants the enchantement) अनन्तानन्त संसार, संततिच्छेद कारणम्। जिनराजपदाम्भोज, स्मरण शरणं मम।। 14।। वीतराग जिनेन्द्र देव के चरण-कमलों का स्मरण, प्रणमन ही पंच-परावर्तन रूप अनन्त संसार की अनादि-कालीन परम्परा का विच्छेद करने में समर्थ है। हे प्रभो! आपके चरण-कमल ही मेरे एकमात्र शरण हैं। ये ही मेरे रक्षक हैं। (Be it noted that) the cause of breaking/tearing the fetters of transmigration (in poor grades of life) in the endless mundane existence, is the recollection or memorising of the lotus feet of shree Jinendra deva. The lotus feet of shree Jineņdra deva are my shelter place. अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम। तस्मात् कारुण्यभावेन, रक्ष-रक्ष जिनेश्वर ।।15।। हे वीतराग स्वामिन्! इस दुःखद संसार में आप ही मेरे शरण हैं, आप ही मेरे रक्षक हैं। आपको छोड़कर मेरा कोई अन्य शरण नहीं, रक्षक नहीं। प्रभो! कारुण्य भाव से, मेरी रक्षा कीजिये। O Lord! there is no other shelter and you alone is my shelter. Hence you please do (compassionately) save me. नहित्रांता नहित्रांता, नहित्राता जगत्त्रये। वीतरागात्परो देवो, न भूतो न भविष्यति।।16।। हे वीतराग प्रभो! तीनों लोकों में आपको छोड़कर अन्य कोई भी मेरा रक्षक नहीं है, नहीं है, नहीं है। वीतराग देव से श्रेष्ठ अन्य कोई देव न भूतकाल में हुआ और न ही भविष्यकाल में कोई होगा। In all the three universes, there is no other savier than you, no other savier than you. Neither in the past and nor in 120 Gems of Jaina Wisdom-IX

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