Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 120
________________ I pay my obeisence to five Jineņdras -Ariņjaya etc. I also pay my obeisence to five Jinendras - Matisāgar etc. the same I do to five Jinendra-Yashodhar etc., as well as to five Jineņdras-Seemaņdhar etc., all these Jineņdra devas are related to five merus (five mountains). रयणत्तयं च वंदे, चउबीस जिणे व सव्वदा वंदे। पञ्चगुरूणां वंदे, चारणचरणं सदा वंदे।।10।। मैं सदा रत्नत्रय की आराधना/वन्दना करता हूँ, प्रथम वृषभ तीर्थंकर से अन्तिम महावीर पर्यन्त चौबीसों तीर्थंकरों को नमस्कार करता हूँ, अहँत्-सिद्ध आचार्य-उपाध्याय व सर्वसाधु पंचपरमेष्ठी रूप पंच महागुरुओं की सदा वन्दना करता हूँ तथा चारण ऋद्धि के धारक युगल मुनियों के चरणों की सदा आराधना, वन्दना-नमन, करता हूँ। I pay my obeisence to three jewels-right faith, right knowledge and right conduct. I also ever pay my obeisence to twenty four Tirthaņkaras. Similarly I pay my obeisence to five supreme beings and to the feet of great saints having the attainment of moving in the sky at all times. अर्हमित्यक्षरं ब्रह्म, वाचकं परमेष्ठिनः। सिद्धचक्रस्य सद्वीजं, सर्वतः प्रणिदध्महे ।।11।। हम सिद्ध परमेष्ठी के ब्रहमवाचक अर्हम् बीजाक्षर का सदा ध्यान करते हैं। “अर्हम्" एक बीजाक्षर है। यह बीजाक्षर आत्मा के शुद्ध स्वरूप का वाचक है तथा शुद्ध आत्म तत्त्व की प्राप्ति करने वाले अनन्त सिद्धों का वाचक है। ऐसे इस बीजाक्षर का हम ध्यान करते हैं। I pay my whole hearted obeisence to the seed letter/root letter/Bijākshar - "Arham" which represents "AkksharaBrahma" (God of letters)/indestructibleGod. This seed letters also connotation (five) supreme beings and is the seed of the wheel of Siddhas (bodyless pure and perfect soul). कर्माष्टकविनिर्मुक्तं, मोक्षलक्ष्मीनिकेतनम्। सम्यक्त्वादि गुणोपेतं, सिद्धचक्रं नमाम्यहम।। 12।। 118 • Gems of Jaina Wisdom-IX

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