Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 115
________________ विसेस-संजुत्ताणं, बत्तीस-देवेंद-मणिमय मउड मत्थय महियाणं बलदेव वासुदेव चक्कहर रिसि-मुणि-जदि-अणगारोव गूढाणं, थुइ-सय-सहस्यणिलयाणं, उसहाइ-वीर-पच्छिम-मंगल-महापुरिसाणणिच्चकालं, अंचेमि पूजेमि, वंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाओ, सुगइमगणं, समाहि-मरणं जिण-गुण सम्पत्ति होदु मज्झं। (भंते) हे भगवन् ! मैंने (संतिभत्ति काउस्सग्गो कओ) शान्तिभक्ति संबंधी कायोत्सर्ग किया (तस्सालोचेउं इच्छामि) तत्संबंधी आलोचना करने की इच्छा करता हूँ। जो (पंचमहाकल्लाण-संपण्णाण) पांच महाकल्याणकों से सम्पन्न हैं, (अट्ठमहा-पाडिहेरसहियाण) आठ महाप्रातिहार्यों से सहित हैं, (चउतीसातिसयविसेस-संजुत्ताण) 34 अतिशय विशेषों से संयुक्त हैं, (बत्तीस-देवेंद-मणिमयमउड-मत्थय महियाण) बत्तीस इन्द्रों के मणिमय मुकुटों से युक्त मस्तक से पूजित (बलदेव-वासुदेव-चक्कहर-रिसि-मुणि-जदि-अणगारोव गूढाणं) बलदेव, नारायण, चक्रवर्ती, ऋषि, मुनि, यति, और अनगारों से परिवृत हैं और (थुइसयसहस्सणिलयाण) लाखों स्तुतियों के घर हैं, ऐसे (उसहाइ-वीर-पच्छिममंगल-महापुरिसाण) वृषभदेव आदि से महावीर पर्यन्त मंगलमय महापुरुषों की मैं (णिच्चकाला) नित्यकाल (अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमस्सामि) अर्चा करता हूँ, पूजा करता हूँ, वन्दन करता हूँ, नमस्कार करता हूँ। (दुक्खक्खओ) मेरे दुःखों का क्षय हो, (कम्मक्खओ) कर्मों का क्षय हो, (बोहिलाहो) रत्नत्रय की प्राप्ति हो, (सुगइगमणं) उत्तम गति में गमन हो, (समाहिमरण) समाधिमरण हो, (जिणगुणसंपत्ति) जिनेन्द्र देव के गुण रूप सम्पत्ति (होऊ मज्झ) मुझे प्राप्त हो। I have perform the body mortification relating to Shāņti bhakti. I want to do its criticism. Those who are adorned with five kalyānakas (holy ceremonies), who are associated with a great splenders, equipped with thirty four excellences, who is worshipped by thirty two gods; who is surrounded by Balbhadra, Bāsudeva (nārāyana), wheel wielding emperors (chakra-borties), Risis, Munies, Yatis and Aņāgāras (saints) and is adored by millions of eulogies. Such Tirthankar Shāņtināth as well as all the Tirthaņkar from Risabhnāth upto Mahāvir and other great personages are here by every day revered, worshipped, venerated and paid obeisance by me. This I do in order to destroy my miseries and karmas and to attain three jewels, attain higher grade of life and die with equanimity. I finally pray for the riches of the attributes of shri Jineņdra deva to be kindly giving to me. Gems of Jaina Wisdom-IX 113

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