Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 117
________________ pray that I should speak to all in sweet and good/beneficial words and reflect/contemplate upon the nature of the element of soul. जैनमार्गरुचिरन्यमार्ग निर्वगता, जिनगुणस्तुतौ मतिः । निष्कलंक विमलोक्ति भावनाः संभवन्तु मम जन्म-जन्मनि ।। 3।। हे वीतराग प्रभो! मुक्ति पर्यन्त प्रत्येक भव में मुझमें जिनेन्द्र कथित रत्नत्रय-रूप मुक्ति मार्ग के प्रति अविचल श्रद्धा बनी रहे। एकान्त, मिथ्या मतों में या संसार-मार्ग में मेरी रुचि अत्यन्त दूर रहे। मेरी बुद्धि सदा जिनेन्द्र देव के अनुपम अतुल गुणों के स्तवन में लगी रहे तथा निर्दोष, निष्कलंक, निर्मल ऐसी जिनेन्द्रवाणी-जिनवाणी मुझे जन्म-जन्म में प्राप्त होती रहे। यह प्रार्थना करता हूँ। O Jineņdra dev! I most respectfully pray that during all my lives (life spans) prior to my salvation I should remain fully and whole heartedly interested in (devoted to) the path or way of Jainism and remain uninterested in paths/ways other than that of Jina. I should also continue to eulogies attributes/virtues of Jina. Similarly I also pray that during this period, my faith in the utterances of the pure and perfect omniscience lord may remain unadulterated/spotless. गुरुमूले यति-निचिते-चैत्यसिद्धान्त वार्धिसद्घोषे। मम भवतु जन्म जन्मनि, सन्यमन समन्वितं मरणम्।। 4।। हे वीतरांग जिनदेव! मेरी एकमात्र यही प्रार्थना है कि जब तक मुक्ति की प्राप्ति न हो; तब तक मेरा भव-भव में ऐसे समागम में समाधिपूर्वक मरण हो, जहां वीतरागी दिगम्बर साधुओं का समूह विराजमान हो, गुरु का पादमूल हो, व जिनप्रतिमा मेरे सामने हो तथा जिनेन्द्र कथित जैन सिद्धान्त रूपी समुद्र का जयघोष हो रहा हो। O Lord! I aspire that the end of this life as well as that of future lives of mine be associated with renunciation. The end of my life should be near the feet of my preceptor, In the presence of group of fellow saints and at holyplace where there is an Gems of Jaina Wisdom-IX 115

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