Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 113
________________ suns of omniscience, give peace to all the living beings of universe. क्षेपक श्लोकानि : शांति शिरोधृत जिनेश्वर शासनानां, शान्तिः निरन्तर तपोभव भावितानां। शान्ति कषाय जय जृम्भित वैभवानां, शान्तिः स्वभाव महिमानमुपागतानाम्। (जिनश्वर शासनानाम्) जिनेन्द्र देव की आज्ञा को (शिरोधृत) मस्तक पर धारण करने वालों को (शान्तिः) शान्ति प्राप्त हो। (निरन्तर तपोभवभावितानाम) अखंड तपश्चरण कर मोक्ष की आराधना करने वालों को (शान्तिः) शान्ति प्राप्त हो/कल्याण हो। (कषायजयभि-तवैभवानाम्) कषायों को जीतकर आत्मिक वैभव से शोभायमान मुनियों को (शान्तिः) समता रस की प्राप्ति हो, (स्वभावमहिमानमुपागतानाम) आत्मा के स्वभाव की महिमा को प्राप्त ऐसे यतियों को (शान्तिः) शान्ति प्राप्त हो/कल्याण हो। May persons accepting and adopting the directions/ instructions of shri Jineņdra devā - attain peace (calmness and quititude). May persons incessantly undergoing hard and difficult austarities attain peace, (salvation) may saints who have overpowered passions and who are glorified by spiritual effluent attain' peace (equanimity) and the saints who are adorned with the glories of the nature of soul, attain peace (state of bodyless pure and perfect soul). जीवन्तु संयम सुधारस पान तृप्ता, नंदतु शुद्धं सहसोदय सुप्रसन्नाः । सिद्धयंतु सिद्धि सुख संगकृताभियोगाः, तीव्र तपन्तु जगतां त्रितयेअर्हदाज्ञा ।।2।। __ (संयम सुधारस पानतृप्ता) संयम रूपी अमृत को पीकर तृप्त हुए मुनिवर्ग (जीवंतु) सदा जीवन्त रहें। (शुद्ध सहसोदय सुप्रसन्नाः) शुद्ध आत्मतत्व की जागृति से प्रसन्नता को प्राप्त मुनिजन (नन्दन्तु) आनन्द को प्राप्त हों। (सिद्धि सुख-संगकृताभियोगाः) सिद्धि लक्ष्मी के सुख के लिये किया है पुरुषार्थ/उद्योग जिन्होंने वे उसके माहात्म्य से (सिद्धयन्तु) सिद्धि को प्राप्त हों। (त्रितये) तीन लोक में (अर्हत् आज्ञा) अर्हन्त-देव की आज्ञा, उनका शासन (जगता) सर्वत्र/पृथ्वी तल पर (तीव्र तपन्तु) विशेष प्रभाव प्रकट हो।... Gems of Jaina Wisdom-IX 111

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