Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 111
________________ (सुरगणैः स्तुत पादपद्याः) जिनके चरण-कमल देवों के समूहों से स्तुत हैं तथा (ये) जो जन्मादि कल्याणकों के समय (शक्रादिभिः मुकुट कुण्डलहार-रत्नैः) इन्द्रों के द्वारा मुकुट-कुण्डल-कर्णभरण, हार और रत्नों से (अभ्यर्चिताः) पूजित हुए थे (ते); वे (प्रवरवंशजगत् प्रदीपाः) उत्कृष्ट वंश तथा जगत् को प्रकाशित करने वाले (तीर्थंकराः जिनाः) तीर्थंकर जिनेन्द्र (मे) मेरे लिये (सतत शान्तिकरा भवन्तु) निरन्तर शान्ति करने वाले होवें। May the Tirthaņkar Shāņtināth - whose lotus feet are worshipped by large group of celestial beings, who was worshipped by lord of celestial beings with divine crown, ear rings, garlands and jewels on the occasion of holy ceremony of birth (Janma kalyānaka), who was born in the highest family and who illuminated the whole universe by his own incarnation-constantly bestow peace upon me. सम्पूजकानां प्रतिपालकानां, यतीन्द्र-सामान्य-तपोधनानाम्। देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः, करोतु शान्तिं भगवन्-जिनेन्द्रः।।।4।। (भगवन जिनेन्द्रः) जिनेन्द्र भगवान (सम्पूजकाना) सम्यक प्रकार से पूजा करने वालों को (प्रतिपालकाना) धर्मायतनों की रक्षा करने वालों को, (यतीन्द्र-सामान्यतपोधनानाम्) मुनीन्द्र, आचार्य तथा तपस्वियों को (देशस्य, राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः) देश, राष्ट्र, नगर और राजा को (शान्ति करोतु) शान्ति करें। O, Lord Jinendra! please compassionately give peace and security to those, who appropriately worship to guardians of religious institutions, saints, to head of the orders of saints, to observers of difficult austarities, to country /nation - city king etc. क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु, बलवान् धार्मिको भूमिपालः। काले काले च सम्यवितरतु मधवा, व्याधयो यान्तु नाशम्।। दुर्भिक्षं चौरमारिः क्षणमपि जगतां, मास्मभूज्जीव-लोके। जैनेन्द्रं धर्मचक्र प्रभवतु सततं, सर्व-सौख्य-प्रदायि।।15।। (सर्वप्रजानां क्षेम) समस्त प्रजा का कल्याण हो, (भूमिपालः बलवान धार्मिकः प्रभवतु) राजा बलवान व धार्मिक हो, (मधवा काले-काले च सम्यग् वितरतु) बादल समय-समय पर जल की वृष्टि करें, (व्याधयः नाशम् यान्तु) बीमारियां क्षय को प्राप्त हो, (जीवलोके) जगत में (दुर्भिक्षं चौरमारि) दुष्काल, चोरी, मारी, हैजा आदि रोग (जगतां क्षणम् अपि मास्मभूत्) जगत् के जीवों को क्षण भर के Gems of Jaina Wisdom-IX – 109

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