Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 110
________________ दिव्यतरुः सुर-पुष्प-सुवृष्टि-दुन्दुभिरासन-योजन घोषौ। आतप-वारण-चामर-युग्मे, यस्य विभाति च मण्डलतेजः।।।।। (यस्य) जिन शान्तिनाथ भगवान के (दिव्यतरुः) अशोक वृक्ष, (सुरपुष्पसुवृष्टिः) देवों द्वारा उत्तम सुगन्धित पुष्पों की वर्षा, (दुन्दुभिः) दुन्दुभिनाद, (आसन-योजन घोषौ) सिंहासन तथा एक योजन तक सुनाई देने वाली दिव्यध्वनि, (आतपवारण-चामर युग्मे) छत्रत्रय, दोनों ओर चँवर दुरना (च) और (मण्डलतेजः) भामण्डल का तेज ये आठ प्रातिहार्य (विभाति) सुशोभित हैं। I pay my best regards to the feet of Bhagwān Shāņtināthwho is well ornamented by eight marvels i.e. Ashoka tree, raining of fragrent celestious flowers by celestial beings, recite of the musical instrument - Dundubhi, throne, devine sound liable to be listened with in an area of one yojana, three umbrellas, movements of sixty four whiskers on both sides and charming beauty of halox. तं जगदर्चित-शान्ति-जिनेन्द्रं, शान्तिकरं शिरसा प्रणमामि। -- सर्व गणाय तु यच्छतु शान्ति, मह्यमरं पठते परमां च ।।2।। (शान्तिकर) शान्ति को करने वाले (त) उन (जगत् अर्चित) तीनों लोकों के जीवों से पूज्य (शान्तिजिनेन्द्र) शान्तिनाथ भगवान को (शिरसा प्रणमामि) मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। (सर्वगणाय) समस्त समूह को (शान्ति यच्छतु) शान्ति दीजिये (तु) और (पठते मह्य) स्तुति पढ़ने वाले मुझे (अरं परमां च) शीघ्र तथा उत्कृष्ट शान्ति दीजिये। I humbly and respectfully bow down and pay my respects to Bhagwān Shāņtināth - who is worshippable by all the living beings of all the three universes, who bestows peace upon all the living beings. O Lord ! I humbly pray you compassionately, give excellent peace to all mundane souls encouragive of those who recite this eulogy. येऽभ्यर्चिता मुकुट-कुण्डल-हार-रलैः, शक्रादिभिः सुरगणैः स्तुत-पादपद्माः। ते मे जिनाः प्रवर-वंश-जगत्प्रदीपाः, तीर्थंकराः सतत शान्तिकरा भवन्तु 18 ।। 108 • Gems of Jaina Wisdom-IX

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