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लिये भी न हो और (सर्वसौख्य प्रदायि जैनेन्द्रं धर्मचक्र सततं प्रभवतु) समस्त सुखों को देने वाला जिनेन्द्र देव का धर्मचक्र निरन्तर प्रवाहशाली बना रहे-सदा प्रवर्तमान, शक्तिशाली बना रहे। -
O, lord! may all the people be happy, may the king be powerful and religious clouds let rain at proper times, let ailments/diseases be uprooted/eradicated, may the living beings of universe not be subjected to famine, theft, epidemic even for a moment and may the wheel of religion of shri Jinendra deva, which yields all kinds of pleasures ever continue to move and remain effective.
तद् द्रव्यमव्ययमुदेतु शुभः सदेशः, संतन्यतां प्रतपतां सततं सकालः। भावः स नन्दतु सदा यदनुग्रहेण, रत्नत्रयं प्रतपतीह मुमुक्षवर्गे।।16।।
(यत् अनुग्रहेण) जिनके अनुग्रह से (इह) यहाँ (मुमुक्षुवर्ग) मोक्ष की इच्छा करने वाले मुनिजनों में (रत्नत्रय) रत्नत्रय द्रव्य (उदेतु) उत्पन्न होओ। (सव शुभ देशः) वह शुभ देश/शुभ स्थान मुनियों को मिले, (सतत) सदा उन मुनियों के रत्नत्रय (सन्तन्यतां प्रतपता) समीचीन तप वृद्धि हो, (स कालः) वह उत्तम काल मुनियों को प्राप्त हो तथा (सदा नन्दतु) सदा आत्मा के निर्मल परिणामों से प्रसन्न हों (स भावः) वह भाव मुनियों को प्राप्त हो।
Auspicious substance, auspicious region, auspicious time and auspicious volitions are those, which make/enable the gemstrio of saints better and more capable. Such substance, region/ place, time and volitions have been meansed to be good and gainful, which cause flowerance of right faith, right knowledge and right conduct of saints to be well manifested and developed.
प्रध्वस्त घाति कर्माणः, केवलज्ञान भास्कराः। कुर्वन्तु जगतां शान्ति, वृषभाद्या, वृषभाद्या जिनेश्वराः।।17।।
(प्रध्वस्त-घाति-कर्माणः) जिन्होंने घातिया कर्मों का क्षय कर दिया है जो (केवलज्ञान-भास्कराः) केवलाज्ञान रूपी सूर्य से शोभायमान हैं; ऐसे (वृषभाद्या जिनेश्वराः) वृषभ आदि तीर्थंकर (जगतां शान्तिं कुर्वन्तु) संसार के समस्त जीवों को शान्ति प्रदान करें।
May the Tirthaņkaras i.e. Risabhnāth etc. who have fully destroyed all their fatal karmas and who are adorned with the
110 . Gems of Jaina Wisdom-IX