Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

Previous | Next

Page 104
________________ शान्ति भक्ति (Shanti Bhakti) न स्नेहाच्छरणं प्रयान्ति भगवन्! पादद्वयं ते प्रजाः, हेतुस्तत्र विचित्र दुःख निचयः संसार घोरार्णवः। अत्यन्त स्फुरदुग्र रश्मि निकर व्याकीर्ण भूमण्डलो, गैष्मः कारयतीन्दु पाद सलिल-च्छायानुरागं रविः।।।।। (भगवन्!) हे भगवान् ! (प्रजाः) संसारी भव्य जीव (ते पादद्वय) आपके दोनों चरणों की (शरण) शरण को (स्नेहात्) स्नेह से (न प्रयान्ति) प्राप्त नहीं होते हैं। (तत्र) उसमें (विचित्त दुःख निचयः) विचित्र प्रकार का कर्मों का समूह ऐसा (संसार घोर आर्णवः हेतुः) संसार रूपी घोर/भयानक समुद्र ही एकमात्र कारण है। उचित ही है (अत्यन्त स्फुरत्-उग्ररश्मि-निकर-व्याकीर्ण-भूमण्डलः) अत्यन्त देदीप्यमान प्रचण्ड किरणों के समूह से पृथ्वी मण्डल को व्याप्त करने वाला (गैष्मःरविः) ग्रीष्म ऋतु का सूर्य (इन्दु-पाद-सलिल-च्छाया-अनुराग) चन्द्रमा की किरण, जल व छाया से अनुराग को (कारयति) करा देता है। O God! People do not take shelter under your feet just because they have had any love or affection for them. They do so; because this great ocean of world, which is the aggregate (multitude) of strange pains (sorrows) forces them to do so. When the sun, in the hot summer makes (or causes) the whole world distressed or afflicted with scorching heat by its fierce and pungent rays, then that distress or affliction makes the world hanker for (and feel the necessity of) the water, shade and cooled rays of the moon. (and the people of the world commence entering into and bathing in that i.e. cold water, having the reflection of moon.) क्रुद्धाशीविष दष्ट दुर्जय विषय ज्वालावली विक्रमो, विद्या भेषज मन्त्र तोय हवनै यति प्रशान्ति यथा। तवत्ते चरणारुणाम्बुज युग स्तोत्रोन्मुखानां नृणाम्, विघ्नाः कायविनायकाश्च सहसा शाम्यन्त्यहो विस्मयः।।2।। (यथा) जिस प्रकार (क्रुद्ध-आशीविष-दष्ट-दुर्जयविषय-ज्वालावली-विक्रमः) अत्यन्त क्रोध को प्राप्त सांप के द्वारा डसे मनुष्य के दुर्जेय विष ज्वालाओं के समूह का प्रभाव महाशक्ति (विद्या-भेषज-मन्त्र-तोय-हवनैः) विद्या, औषधि, मन्त्र, जल और हवन के द्वारा (प्रशान्तिं याति) पूर्ण शान्ति को प्राप्त हो जाता है, नाश को प्राप्त 102 Gems of Jaina Wisdom-IX

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180