Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 95
________________ strictly observe five fold conduct and make their desciples to do so; and who are used to be compassionate and kind towards their desciples. गुरुभत्ति संजमेण य, तरंति संसारसायरं घोरं। छिणति अट्ठकम्म, जममणमरणं ण पावेंति।।3।। (गुरुभत्ति संजमेण य) गुरुभक्ति और संयम से (जीव) (घोरं संसारसायर) घोर/भीषण संसार-सागर को (तरंति) पार करते हैं, (अटठकम्मं छिण्णंति) अष्टकर्मों का क्षय करते हैं, (जम्मणमरणं ण पावेंति) जन्म-मरण को नहीं पाते हैं। I pay my obeisance to such Achāryas - who cross the deep ocean of mundane existence with the help of devotion to their preceptors and restraints, who did stop their all the eight karmas and become free from the vicious circle of birth, oldage & death. ये नित्यं व्रतमंत्रहोमनिरता, ध्यानाग्नि होत्राकुलाः। षट्कर्माभिरतास्तपोधन धनाः, साधुक्रियाः साधवः।। शीलप्रावरणा गुणप्रहरणाश्चंद्रार्क तेजोऽधिकाः। मोक्षद्वार कपाट पाटन भटाः प्रीणंतु मां साधवः।।4।। (ये) जो आचार्य परमेष्ठी (नित्य) नियम से (व्रतमंत्रहोमनिरता) व्रत रूपी मंत्रों से कर्मों का होम करने में निरत/लगे हुए हैं। (ध्यानाग्नि होत्राकुलाः) ध्यान रूपी अग्नि के कर्म रूपी हवी/ईंधन को देते हैं। (षट्कर्माभिताः तपोधनधनाः) जो तपोधन, छह आवश्यक कर्मों में सदा लगे रहते हैं तथा तप रूपी धन जिनके पास है, (साधुक्रियाः साधवः) पुण्य कर्मों के करने में सदैव तत्पर रहते हैं, (शीलप्रावरणा) अठारह हजार शील ही जिनके ओढने के वस्त्र हैं, (गुणप्रहरणाः) छत्तीस मूलगुण व चौरासी लाख उत्तरगुण ही जिनके पास शस्त्र हैं, (चन्द्र-अर्क तेजः अधिकाः) जिनका तेज सूर्य और चन्द्रमा से भी अधिक है, (मोक्षद्वार कपाट पाटनभटाः) मोक्ष के द्वार को उघाड़ने/खोलने में जो शूर हैं; ऐसे (साधवः) आचार्य परमेष्ठी/साधुजन (मा) मुझ पर (प्रीणंतु) प्रसन्न होवें। I pay my obeisance to such Āchāryas, who reduce their karmas to ashes with the help of spell of vowfulness, who burn the fuel of karmas with the fire of meditation, who strictly perform six essential duties, whose riches consist of Gems of Jaina Wisdom-IX 93

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