Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 93
________________ तरुमूलयोगयुक्ता-नवकाशातापयोगराग सनाथान्। बहुजन हितकर चर्या-नभयाननघान्महानुभाव विधानान्।।9।। जो (तरुमूल-योग-युक्तान्) वर्षा काल में वृक्ष के नीचे ध्यान कर "तरुमूलयोग" को धारण करते हैं, (नवकाश-आतप-योग-राग-सनाथान्) शीतकाल में खुले आकाश में ध्यान कर अभ्रावकाश योग व ग्रीष्मकाल में सूर्य के सम्मुख खड़े हो ध्यान करते हुए आतापन योग सम्बन्धी राग से सहित हैं, (बहुजन-हितकर-चर्यान्) जिनकी चर्या अनेक जनों का हित करने वाली है, जो (अभयान्) सप्त प्रकार के भयों से रहित हैं (अनघान) जो पापों से रहित हैं (महानुभाव-विद्यमान्) जो बहुत भारी प्रभाव से युक्त हैं, उन आचार्य परमेष्ठी भगवन्तों को मैं नमस्कार करता हूँ। I pay my obeisance to supreme-being Achāryas- who used to do penance under the shade of a tree during rainy season (Tarumool yoga); do penance under an open sky during winter season (abhrāvakāsa yoga), who do penance confronting the sun during summer season, (atāpana yoga), whose conduct is beneficial to people at large; who are free from all the seven kinds of fears; who are sinless; and who are highly influential. ईदृशगुणसंपन्नान् युष्मान्भक्त्या विशालया स्थिरयोगान्। विधिनानारतमग्रयान्-मुकुलीकृतहस्तकमल शोभित शिरसा।।10।। अभिनौमि सकलकलुष, प्रभावोदय जन्म जरामरण बंधन मुक्तान्। शिवमचल मनघमक्षय-मव्याहत मुक्ति सौख्यमस्त्विति सततम्।।1।। (ईदृशगुण-सम्पन्नान्) इस प्रकार ऊपर कहे गुणों से युक्त (स्थिर-योगान्) जो स्थिर योगी हैं अथवा मन-वचन-काय तीनों योग जिनके स्थिर हैं अथवा जो स्थिर ध्यान के धारक हैं, (अनारतम्) जो निरन्तर (अग्रयान्) लोकोत्तर हैं तथा (सकल-कलुषप्रभव-उदय-जन्म-जरा-मरण-बन्धन-मुक्तान्) जो समस्त पापों या कलुषित परिणामों के कारण उत्पन्न होने वाले जन्म-जरा-मरण के बन्धन से मुक्त होने वाले हैं, ऐसे (युष्मान्) आप आचार्य परमेष्ठी को (विशालया भक्त्या) बड़ी भारी भक्ति से (विधिना) विधिपूर्वक (मुकुलीकृत-हस्त-कमल-शोभित-शिरसा) अंजलिबद्ध हस्त-कमलों से सुशोभित शिर से (अभिनौमि) नमस्कार करता हूँ, मुझे (शिवम्) कल्याण रूप, (अचल) अविनाशी, (अनघ) पापरहित, (अक्षय) क्षय रहित (अव्याहत-मुक्ति-सौख्यम् अस्तु इति) कभी नाश नहीं होने वाला मुक्ति सुख प्राप्त हो, इस प्रकार भावना करता हूँ। Gems of Jaina Wisdom-IX – 91

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