Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 91
________________ धारितविलसन्मुण्डान्वर्जितबहु दण्डपिण्डमण्डल निकरान्। सकलपरीषहजयिनः, क्रियाभिरनिशंप्रमादतः परिरहितान् ।।5।। (धारित-विलसत्-मुण्डान्) जिन्होंने शोभायमान दस मुण्डों मन-वचन-कायपंचेन्द्रियां-हस्त-पाद को धारण किया है, (वर्जित-बहु-दण्ड-पिण्ड- मण्डल-निकरान्) अधिक प्रायश्चित लेने वाले या अधिक अपराधी व अधिक प्रायश्चित्त लेने वाले आहार को ग्रहण करने वाले मुनियों के समूह से जो सदा रहित रहते हैं, (सकलपरिषह-जयिनः) जो समस्त बाईस परिषहों को जीतने वाले हैं और (अनिश) निरन्तर (प्रमादतः क्रियाभिः) प्रमाद से होने वाली क्रियाओं से (परिरहितान) रहित हैं, उन आचार्य भगवन्तों को मेरा नमस्कार है। I pay my obeisance to supreme being Āchāryas - who have got ten parts/organs (mind, speech and body, five senses and hand & feet); who keep themselves away from saints, used to often commits various wrongs and are therefore forced to expiate therefore; who conquered twenty two hardships (parisaha) and are free from the consiquenees of careless/ negligent activities. अचलान्व्यपेतनिद्रान्, स्थानयुतान्कष्टदुष्टलेश्या हीनान्। विधिनानाश्रितवासा-नलिप्तदेहान्विनिर्जितेन्द्रियकरिणः।।6।। जो (अचलान्) उपसर्ग-परिषहों के आने पर भी अपने गृहीत संयम से कभी चलायमान नहीं होते हैं, (व्यपेतनिद्रान) जो विशेषकर निद्रा रहित होते हैं अथवा जो विशेष नहीं, मात्र अल्प निद्रा लेते हैं, (स्थान-युतान्) खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करते हैं, (कष्ट-दुष्ट-लेश्या हीनान) जो अनेक प्रकार के दुःखों को देने वाली कष्टदायी कृष्णादि अशुभ लेश्याओं से रहित हैं, (विधि-नानाश्रित-वासान्) जो चरणानुयोग की विधि के अनुसार पर्वत, मंदिर, गुफा, शून्यगृह आदि नाना स्थानों में निवास करते हैं, (अलिप्त-देहान्) जिनका शरीर केशर-चन्दन-भस्म आदि के लेप से रहित है तथा (विनिर्जित-इन्द्रियकरिणः) जिन्होंने इन्द्रिय रूपी हाथियों को जीत लिया है, उन आचार्य परमेष्ठी भगवन्तों को मैं मन-वचन-काय से नमस्कार करता हूँ। I pay my obeisance to supreme-being Achāryas - who ever remains unmoved, unperturbed; who are sleepless i.e. who sleep for a very small period; who perform body mortification while standing; who are free from inauspicious distressing thought colours; whose body is not at all embalmed Gems of Jaina Wisdom-IX . 89

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