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पंच गुरुभक्ति (Panch-Guru Bhakti) Devotional Songs of five supreme-beings
मणु यणाइंद सुर धरिय छत्तत्तया पंचकल्लाण सोक्खावली पत्तया। दंसणं णाण झाणं अणंतं बलं, ते जिणा दिंतु अम्हं वरं मंगलं ।।।।
राजा, नागेन्द्र और सुरेन्द्र जिन पर तीन छत्र धारण कराते हैं तथा जो पंचकल्याणकों के सुख समूह को प्राप्त हैं; वे जिनेन्द्र हमारे लिए उत्कृष्ट मंगल स्वरूप अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतबल और उत्कृष्ट ध्यान को देवें।
May shri Jineņdra deva - who enjoy the joy of five kalyānakas (divine ceremonies) and upon whom kings, lords of serpents and lords of celestial beings hold three umbrellas, bless up with excellently auspicious four infinites-infinite perception, infinite knowledge, infinite prowess and supermost meditation. .
जेहिं झाणाग्गि बाणेहिं अइ-दडयं जम्म जर मरण णयरत्तयं दढ्डयं। जेहिं पत्तं सिवं सासयं ठाणयं, ते महं दिंतु सिद्धा वरं णाणयं ।।2।।
जिन्होंने ध्यान रूपी अग्निवाणों से सुदृढ़ जन्म, जरा और मरण रूपी तीनों नगरों को जला डाला तथा जिन्होंने शाश्वत मोक्ष स्थान प्राप्त कर लिया, वे सिद्ध भगवान् मुझे उत्तम ज्ञान प्रदान करें।
May bodyless pure and perfect souls (Siddhas) - who have reduced the three strong cities (strong holds) of birth, oldage and death to ashes by the sharp-arrows of meditation and who have attained eternal/everlasting the abode of salvation - bless me with best/most excellents knowledge.
पंच-आचार पंचग्गि संसाहया, बारसंगाइ सुअ-जलहि अवगाहया। मोक्खलच्छी महंती महंते सया, सूरिणो दितु मोक्खं गया-संगया।।3।।
जो पांच आचार रूपी पांच अग्नियों का साधन करते हैं, द्वादशांग रूपी समुद्र में अवगाहन करते हैं तथा जो आशाओं से रहित मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। ऐसे आचार्य परमेष्ठी मेरे लिए सदा महती मोक्ष रूपी लक्ष्मी को प्रदान करें। .
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Gems of Jaina Wisdom-IX