Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 90
________________ salvation and who are skilled in destroying the real causes of huge karmic bondage. गुणमणिविरचितवपुषः, षड्द्रव्यविनिश्चितस्यधातॄन्सततम्। रहितप्रमादचर्यान्, दर्शनशुद्धान् गणस्य संतुष्टि करान् ।।3।। (गुणमणि-विरचित-वपुषः) जिनका शरीर गुण रूपी मणियों से विरचित है, जो (सततम्) सदाकाल (षट्-द्रव्य-विनिश्चितस्य धातृन) छह द्रव्यों के निश्चय को धारण करने वाले हैं, (रहित प्रमाद चर्यान) प्रमाद चर्या से रहित हैं, (दर्शनशुद्धान्) सम्यग्दर्शन से शुद्ध हैं तथा (गणस्य संतुष्टिकरान) गण को अर्थात् साधु संघ को संतुष्ट करने वाले हैं; (अभिनौमि) उन आचार्य परमेष्ठी भगवन्त को मेरा नमस्कार है। I pay my obeisance to supreme being Achāryas - whose bodies are formed/manufactured by the gems of fine merits/ attributes; who uphold the real knowledge about six substances, whose conduct are free from negligencel carelessness, who are purified by rightfaith and who keep the saints of their respective orders well satisfied. मोहच्छिदुग्रतपसः, प्रशस्तपरिशुद्धहृदयशोभन व्यवहारान्। प्रासुकनिलयाननघानाशा विध्वंसिचेतसो हतकुपथान।।4।। (मोहच्छित् उग्रतपसः) जिनका उग्र तप मोह का अथवा अज्ञान का नाश करने वाला है, (प्रशस्त-परिशुद्ध-हृदय-शोभन-व्यवहारान्) प्रशस्त, शुभ और शुद्ध हृदय से जिनका व्यवहार उत्तम है, पर-उपकारक है, (प्रासुकं निलयान्) जिनका निवास सम्मूर्छन जीवों से रहिल प्रासुक रहता है, (अनघान्) जो पापों से रहित हैं, (आशा विध्वंसि चेतसः) जिनका चित्त आशा-तृष्णा, आकांक्षा को नष्ट करने वाला है और (हत-कुपथान्) जिन्होंने कुमार्ग को नष्ट कर दिया है, उन आचार्य परमेष्ठी की मैं अभिवन्दना करता हूँ। I pay my obeisance to supreme being Āchāryas - whose hard and difficult austarities destroy their delusion; whose religious practices are excellent because of thier refined auspicious and purified minds and hearts; whose dwellings are devoid of micro-organisms, who are sinless; whose minds are the destroyers of hopes and desires and who have eliminaied wrong paths. 88 Gems of Jaina Wisdom-IX

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