Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 44
________________ कथयन्ति कषाय-मुक्ति-लक्ष्मी, परया शान्ततया भवान्तकानाम् । प्रणमाम्याभिरूप-मूर्तिमन्ति, प्रतिरूपाणि विशुद्धये जिनानाम्।।14।। (भवान्तकानाम्) संसार का अन्त करने वाले (जिनानाम्) जिनेन्द्र देवों की (अभिरूप-मूर्तिमंति) चारों ओर से अत्यंत सुन्दरता को धारण करने वाली, (कषाय-मुक्ति-लक्ष्मी) कषायों के त्याग से अन्तरंग-बहिरंग लक्ष्मी की युक्तता को (परया शान्ततया) अत्यंत शान्तता के द्वारा (कथयन्ति) सूचित करती है; ऐसी उन (प्रतिरूपाणि) जिनेन्द्र देव की प्रतिमाओं को मैं (विशुद्धये) विशुद्धि के लिये (प्रणमामि) नमस्कार करता हूँ। I pay obeisance to the idols of Jinas, who have destroyed/ ended their mundane existence - which are extremly beautiful every where, which express utmost peace denoting association with internal and external goddesses of wealth resulting from the abandonment of passions in order to attain purification of my soul. यदिदं मम सिद्धभक्ति-नीतं, सुकृतं दुष्कृत-वर्त्म-रोधि तेन। पटुना जिनधर्म एव भक्ति-भव-ताज्जनमनि जन्मनि स्थिरा मे।।15।। (सिद्धभक्ति-नीत) तीन जगत् में प्रसिद्ध जिनेन्द्र भक्ति से प्राप्त और (दुष्कतवमरोधि) खोटे मार्ग को रोकने वाला (मम) मेरा (यत् इदं सुकृत) जो यह पुण्य है; (तेन पटुना) उस प्रबल पुण्य से (मे भक्तिः ) मेरी भक्ति (जन्मनि-जन्मनि) जन्म-जन्म में (जिनधर्म) जिनधर्म में (एव) ही (स्थिरा भवतात्) स्थिर हो। May myself remain devoted to the religion of Jina, famous in all the three universes (Jina dharma) in all the future modes of my mundane existence as a result of my capable virtuous karmas attained by the devotion to shri Jineņdra deva, which prevents me from going on wrong path adoring the idols of Jinas and the temples of Jinas of the whole universe. अर्हतां सर्वभावानां दर्शन-ज्ञान-सम्पदाम्। कीर्तयिष्यामि चैत्यानि यथाबुद्धि विशुद्धये।।16।। (सर्वभावानाम्) सर्व पदार्थों की समस्त पर्यायों को युगपत् जानने वाले-सर्वज्ञ, (ज्ञान-दर्शन-सम्पदाम्) ज्ञान, दर्शन रूप सम्पत्ति से सहित (अर्हतां चैत्यानि) अरहन्त 42 • Gems of Jaina Wisdom-IX

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