Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 48
________________ supplementary vows are the two good and great banks of this great river. शुक्लध्यान- स्तिमित स्थित - राज - द्राजहंस -राजित - मसकृत । स्वाध्यायं - मन्द्रघोषं नांना - गुण-समिति - गुप्ति - सिकता - सुभगम् ।।25 ।। (शुक्ल-ध्यानस्तिमित-स्थित-राजत्- राजहंस -राजितम् ) जो जिनदेव / अरहन्तदेव रूपी महानद शुक्लध्यान में निश्चल होकर स्थित रहने वाले शोभायमान श्रेष्ठ मुनिराज रूपी राजहंस पक्षियों से सुशोभित हैं; (असकृत स्वाध्याय - मन्द्रघोष ) जिसमें बार-बार होने वाले स्वाध्याय का गंभीर शब्द गुंजन कर रहा है ( नानागुण-समिति - गुप्ति-सिकता - सुभगम् ) जो अनेक गुणों के समूह रूप समिति और गुप्त रूप बालू से सुन्दर है । 1 The great river consisting of shri Arihanta deva/Jina devas is adorned with the excellent words of Rajhansas ie great saints, who remain static/unperturbed in pure meditation; where in repeatedly echos the deep sound of scriptural studies; which is fascinating due to the saints of carefulnesses and disciplines consisting of many aggrigates of merits/attributes. क्षान्त्यावर्त-सहस्रं सर्व- दया-विकच - कुसुम - विलसल्लतिकम् । दुःसह - परीषहाख्य- द्रुततर - रंग-तरंग - भगुडुर-निकरम् । 126 ।। ( क्षान्ति - आवर्त - सहस्र) उत्तम क्षमा रूपी हजारों भँवरें जहाँ उठ रही हैं, (सर्वदयाविकच - कुसुम - विल-सल्लतिकम्) जहाँ अच्छी-अच्छी लताएँ सब जीवों पर दया रूपी खिले हुए पुष्पों से विशेष सुशोभित हैं, (दुःसह- परीषहाख्य- द्रुततररग्डरंगभग्डुर-निकरम्) जहाँ अत्यन्त कठिन परिषह नामक अति शीघ्र चलती हुई तरंगों का क्षणभंगुर / विनश्वर समूह है । Where in (in the said great river) arises thousands of whirlpools of supreme foregiveness; where in fine creepers having beautiful bloosomed flowers of compassion/nonviolence do exist, where in exist the multitudes of fast moving momentary waves of very difficult hardships. व्यपगत - कषाय-फेनं राग-द्वेषादि - दोष - शैवल-रहितम् । अत्यस्त-मोह- कर्दम-मतिदूर - निरस्त - मरण-मकर-प्रकरम् । ।27 ।। 46 Gems of Jaina Wisdom-IX

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