Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 81
________________ योगी भक्ति (Yogi Bhakti : Devotional prayer of ascetics) जातिजरोरुरोग मरणातुर, शोक सहस्रदीपिताः, दुःसहनरकपतन सन्त्रस्तधियः प्रतिबुद्धचेतसः। .. जीवितमंबु बिंदुचपलं, तडिदभ्रसमा विभूतयः, सकलमिदंविचिन्त्यमुनयः, प्रशमायवनान्तमाश्रिताः।।1।। मुनिराज (जाति जरोरूरोग - मरण - आतुर - शोक सहस्त्रदीपिताः) जन्म-जरामरण विशाल और रोग से दुखी होकर जो हजारों शोकों से प्रज्वलित हैं, (दुः सहनरकपतन संत्रस्तधियः) असह्य वेदना युक्त घोर नरकों में गिरने के दुःखों से जिनकी बुद्धि अत्यन्त पीड़ित/भयभीत है तथा (प्रतिबुद्धचेतसः) जिनके हृदय में हेय-उपादेय का विवेक जागृत हो रहा है, (जीवितम् अम्बुबिदुचपल) जो जीवन को जल की बिन्दु के समान अत्यन्त चंचल तथा (तडित् अभ्र समा विभूतयः) संसार की समस्त विभूतियों को बिजली व मेघ के समान क्षणिक मानते हैं (इदं सकल); यह सब (विचिन्त्य) विचार कर (प्रशमाय) आत्मिक, अलौकिक शान्ति के लिये (वनान्तम् आश्रिताः) वन के मध्य में आश्रय लेते हैं। What kinds of ascetics alone take shelter in forest? such saints alone-who are afraid of the thousands of pangs of birth, oldage, death and diseases concerning mundane existence, who are very much afraid of going to hell full of unbearable agonies; who are getting awaking/awake by knowing the difference between the acceptable and unacceptable, who deem/think of life to be as momentary as the drop of water and who treat all the riches and glories of mundane existence to be as transitory/momentary as lightening of clouds and who aspire for eternal transcendental spiritual bliss-take shelter (live) in forests. व्रतसमिति गुप्ति संयुताः, शमसुखमाधाय मनसि वीतमोहाः। ध्यानाध्ययनवशंगताः, विशुद्धये कर्मणां तपश्चरन्ति ।।2।। (वीतमोहाः) नष्ट हो चुका है मोह जिनका; ऐसे वे मुनिराज (व्रत-समितिगुप्ति-संयुताः) पांच महाव्रत, पांच समितियों, तीन-गुप्तियों से सहित हो, (ध्यान-अध्ययन वशं गताः) ध्यान और स्वाध्याय के वशीभूत हो, (मनसि) मन में Gems of Jaina Wisdom-IX 79

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