Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 79
________________ (जैनेन्द्र) जिनेन्द्र देव कथित (इदम्) इस (उत्तमम् चारित्रम्) उत्तम चारित्र पर (आरोहन्तु तराम्) अच्छी तरह आरोहण करें। May the mundane souls capable of attaining salvation, (bhavya Jiva) who are Aasanna bhavya and liabely to attain salvation in near future, who are fearful of the pangs/sorrows of mundane existance, who constantly pray for the attainments of ever lasting goddess of eternal bliss of salvation, whose intellect is excellent/best because of its submergence in path of salvation consisting of gems-trio, whose vicious karmas have been destroyed and are no more and who are highly glamorous and most illustrous ascending firmly on the unparalleled high stipping stones of the great and enlarge adifice of right conduct as inunciated /pronounced by shri Jinendra deva. अंचलिका (Marginal note) इच्छामि भंते! चारित्त भत्ति काउस्सग्गो कओ, तस्स आलोचउं सम्पणाणजोयस्य सम्पपत्ताहिट्ठिसस्य, सव्वपहाणस्स, णिव्वाणमग्गस्स, कम्मणिज्जरफलस्स, खमाहारस्स, पञ्चमहव्वयसंपण्णस्स, तिगुत्तिगुत्तस्स, पञ्चसमिदिजुत्तस्स, णाणज्झाण साहणस्स, समया इव पवेसयस्स, सम्मचारित्तस्स णिच्चकालं, अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं, समाहिमरणं जिणगुणरांपत्ति होउ मज्झं। (भंते!) हे भगवन्! मैंने (चारितभक्ति काउस्सग्गो कओ) चारित्र-भक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया। (तस्स आलोचेउ) उस सम्बन्धी आलोचना करने की (इच्छामि) इच्छा करता हूँ। (सम्मणाणुज्जोयस्स) जो सम्यज्ञान रूप उद्योत/प्रकाश से सहित हैं, (सम्मत्तहिट्ठियस्स) सम्यग्दर्शन से अधिष्ठित हैं, (सववपहाणस्स) सबमें प्रधान हैं, (णिव्वाण-मग्गस्स) मोक्ष का मार्ग है, (कम्म-णिज्जर-फलस्स) कर्मो की निर्जरा ही जिसका फल है, (खमाहारस्स) क्षमा जिसका आधार है, (पंचमहव्वयसंपण्णस्स) पांच महाव्रतों से सुशोभित है, (तिगुत्ति-गुत्तस्स) तीन गुप्तियों से रक्षित हैं, (पंचसमिदि-जुत्तस्स) पांच समितियों से युक्त है, (णाणज्झाणसाहणस्स) ज्ञान और ध्यान का मुख्य साधन है, (समया इव पवेसयस्स) समता का प्रवेश जिसके अन्तर्गत है, ऐसे (सम्मचारित्तस्स) सम्यक् चारित्र की मैं Gems of Jaina Wisdom-IX – 77

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