Book Title: Gems Of Jaina Wisdom Author(s): Dashrath Jain, P C Jain Publisher: Jain GranthagarPage 58
________________ (श्रीमत मेरौ) श्री-शोभा सम्पन्न मेरु पर्वतों पर, (कुलाद्रौ) कुलाचलों पर, (रजतगिरि वरे) विजयार्द्ध पर्वतों पर, (शाल्मलौ) शाल्मलि वृक्षों पर, (जम्बूवृक्षे) जम्बू वृक्षों पर, (वक्षारे) वक्षार गिरियों पर, (चैत्यवृक्षे) चैत्यवृक्षों पर, (रतिकर रुचके) रतिकर और रुचकगिरि पर, (कुण्डले मानुषाक्डे) कुण्डलगिरि और मानुषोत्तर पर, (इष्वाकारे) इष्वाकार पर्वतों पर, (अञ्जनाद्रौ) अंजन गिरियों पर, (दधिमुखशिखरे) दधिमुख पर्वतों के शिखरों पर, (व्यन्तरे) व्यन्तरों के आवासों पर, (स्वर्गलोके) स्वर्ग लोक में, (ज्योतिर्लोके) ज्योतिष्क देवों के लोक में तथा (भुवनमहितले) भवनवासियों के भवनों में (यानि चैत्यालयानि) जितने चैत्यालय हैं, (तानि अभिवन्दे) उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ। I pay my respectful obeisance to all the temples of Jinas existing on the beautiful meru mountains, on Kulaachalas, Vijayārdha mountains, Shaalmali trees, Jamboo tree, Vakchhār giri mountains, chaitya trees, Ratikar mountain, Ruchik mountain, Kundal giri and Maanushottar mountains; Ekchhawaakaar mountains, Anjangiri mountain, on summits of mount Dadhimukh, in dwellings of perapetatic gods andin the mansions of mansion dweller gods. देव सुरेन्द्र नर-नाग-समर्चितेभ्यः, पापप्रणाशकर भव्य मनोहरेभ्यः घंटाध्वजादि परिवार विभूषितेभ्यो, नित्यं नमो जगति सर्व जिनालयेभ्यः।।6।। (देव-असरेन्द्र-नर-नाग-समर्चितेभ्यः) देवेन्द्र, असुरेन्द्र, चक्रवर्ती, धरणेन्द्र ने जिनकी सम्यक् प्रकार से पूजा की है, जो (पापप्रणाशकर) पापों का नाश करने वाले हैं, (भव्य मनोहरेभ्यः) भव्य जीवों के मन को आकर्षित करते हैं, (घंटाध्वंजा-आदि परिवार विभूषितेभ्यो) घंटा-ध्वजा-माला-धूपघट, अष्ट मंगल, अष्ट प्रातिहार्य आदि मंगल वस्तुओं के समूह से सुसज्जित हैं/अलंकृत हैं; ऐसे (जगति) तीन लोक में स्थित (सर्वजिनालयेभ्यः) सभी जिन-मन्दिरों के लिये (नित्य) प्रतिदिन/प्रत्येक काल याने सदा-सर्वदा (नमः) नमस्कार हो। I every day always pay obeisance to all the temples of Jinas existing in all the three universes which have been appropriatrly worshipped by lords of celestial beings, lords of Asuraj, wheel wielding emperors and Dharnendraj; who hạve completely destroyed all their sins; who are fascinating to the minds and hearts of Bhavya souls (souls capable to attain salvation); who are well adorned with bells, flags, 56.Gems of Jaina Wisdom-IXPage Navigation
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