Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 65
________________ purva kalyānavāda, prānāvāda, kriyāvishāl and lokavindusāra (that which constitutes the base of material roligious practises relating to path of salvation). दश च चतुर्दश चाष्टावष्टादश च द्वयो-द्विषट्कं च । षोडश च विंशतिं च त्रिंशतमपि पञ्चदश च तथा । । 14 ।। वस्तूनि दश दशान्येष्वनुपूर्वं भाषितानि पूर्वाणाम् । प्रतिवस्तु प्राभृतकानि विंशतिं विंशतिं नौमि । ।15 ।। (पूर्वाणाम् एषु अनुपूर्वं ) 14 पूर्वों की ये क्रमशः (दश च चतुर्दश च अष्टौ - अष्टादश च द्वयोर्द्विषट्कं च षोडश च विंशतिं च त्रिंशतम् अपि पंचदश च दश दशानि वस्तूनि ) 10, 14, 8, 18, 12, 12, 16, 20, 30, 15, 10, 10, 10, 10 वस्तुएं (भाषितानि) कही गई हैं (तथा) तथा ( प्रतिवस्तु) प्रत्येक वस्तु में (विंशतिं विंशतिं) 20-20 ( प्राभृतकानि ) प्राभृतक कहे गये हैं (नौमि ) मैं सबको नमस्कार करता हूँ । It has been so stated that there are ten, forteen, eight, eighteen, twelve, twelve, sixteen, twenty, thirty, fifteen, ten, ten, ten and ten entities respectively in the forteen poorvas in the prescribed order (according to serial number). And in each such entity afore mentioned, twenty-twenty treatises are said to be included. I here by pay respectful obeisance to all of them. पूर्वान्तं परान्तं ध्रुव - मध्रुव - च्यवनलब्धि - नामानि । अध्रुव-सम्प्रणिधिं चाप्यर्थं भौमावयाद्यं च ।।16।। सर्वार्थ-कल्पनीयं ज्ञानमतीतं त्वनागतं कालम् । सिद्धि-मुपाध्यं च तथा चतुर्दश वस्तूनि द्वितीयस्य । ।17 ।। (द्वितीयस्य) दूसरे आग्रायणीय पूर्व की ( पूर्वान्तं हि अपरान्तं ध्रवम् अध्रुव च्यवनलब्धि नामानि) अनुयोगों के नाम, (कृतिवेदने) कृति और वेदना ( तथैव स्पर्शन- कर्मप्रकृतिम् एव बन्धन निबन्धन - प्रक्रम- अनुप्रक्रमम्) स्पर्शन, कर्म, प्रकृति, बन्धन, निबन्धन, प्रक्रम, अनुपक्रम (अथ) पश्चात् (अभ्युदयमोक्षौ) अभ्युदय व मोक्ष (च) और (संक्रम लेश्ये) संक्रम व लेश्या (तथा) तथा (लेश्यायाः कर्म - परिणामौ) लेश्या कर्म व लेश्या परिणाम (च) और ( सातमसातं दीर्घं - ह्रस्वं भवधारणीय-संज्ञ) सातासात, दीर्घ- ह्रस्व, भवधारणीय नाम वाले (च) तथा ( पुरुपुद्गलात्मनाम) पुरुपुद्गलात्म नामक (च) व (निधत्तम् अनिधतम् ) निधत्तानिधत्त (अथ) पश्चात् (सनिकाचितम् अनिकाचितम्) निकाचित- अनिकाचित (अथ ) इसके बाद Gems of Jaina Wisdom-IX 63

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