Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 46
________________ (व्यन्तरविमानेषु) व्यन्तर देवों के विमानों में (ये) जो (स्थेयांसः) सदा स्थिर रहने वाले (प्रतिमागृहाः) चैत्यालय हैं (च) और (संख्याम् अतिक्रान्ताः) असंख्यात हैं (ते) वे (नः) हमारे (दोष-विच्छिदे सन्तु) दोषों को नाश करने के लिये होवें। May the innumerable chaityālayas/temples of Jinas existing in the celestial dwellings of perapetatic gods, existing since ever, destroy/remove our faults. ___ ज्योतिषा-मथ लोकस्य भूतयेऽद्भुत-सम्पदः। , गृहाः स्वयम्भुवः सन्ति विमानेषु नमामि तान्।।20।। (अथ) अब (ज्योतिषां लोकस्य विमानेषु) ज्योतिर्लोक के विमानों में (स्वयंभुवः) अर्हन्त भगवान् की (अद्भुत-सम्पदः) आश्चर्यकारी सम्पदा से सहित जो (गृहाः) चैत्यालय (सन्ति) हैं; (भूतये) अन्तरंग-बहिरंग विभूति की प्राप्ति के लिये (तान्) उनको (नमामि) मैं नमस्कार करता हूँ। I respectfully pay obeisance to all the temples of Arihantas in the celestial vehicles of stellar gods - which possess the wonderous affluence of pure and perfect soul with body (Arihantas)-- in order to attain the internal attributes of four infinites etc. and the external affluences of samavasaran etc. वन्दे सुर-किरीटाग्र-मणिच्छायाभिषेचनम्। याः क्रमेणैव सेवन्ते तदर्चाः सिद्धि-लब्धये।।1।। (याः) जो प्रतिमाएं (सुर किरीटाग्रमणिच्छाया-अभिषेचनम्) वैमानिक देवों के मुकुटों के अग्रभाग में लगी मणियों की कान्ति द्वारा होने वाले अभिषेक को (क्रमेण एव) चरणों से ही (सेवन्ते) प्राप्त करती है (तत् अर्चाः), पूज्यनीय उन प्रतिमाओं को मैं (सिद्धि-लब्धये) मुक्ति की प्राप्ति के लिये (वन्दे) नमस्कार करता हूँ। I respectfully pay obeisance to all the images of Jina, whose lotus feet are being bowed by the reflections in the diadems of foreparts of the crowns of the bowed down gods named celestial emperor, in order to attain salvation. इति स्तुति पथातीव-श्रीभृता-मर्हतां मम। चैत्यानामस्तु संकीर्तिः सर्वासव-निरोधिनी।।22 ।। 44 Gems of Jaina Wisdom-IX

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