Book Title: Gems Of Jaina Wisdom Author(s): Dashrath Jain, P C Jain Publisher: Jain GranthagarPage 45
________________ भगवन्तों के प्रतिबिम्बों की (यथाबुद्धि) अपनी बुद्धि के अनुसार (विशुद्धये) विशुद्धि प्राप्त करने के लिये (कीर्तयिष्यामि) स्तुति करूंगा। Now I shall adore/praise the images of the pure and perfect souls with body/ Arihanta's, who are omniscience and directly know about all the modes of all objects of all universes, simultaneously and who are the owners of riches/property of knowledge and perception according to my intellutual capacity in order to purify my volitions/thought actions. श्रीमद्-भवन-वासस्था स्वयं भासुर-मूर्तयः। वन्दिता नो विधेयासुः प्रतिमाः परमां गतिम्।।17।। (स्वयं-भासुर-मूर्तयः) स्वभाव से दैदीप्यमान शरीर को धारण करने वाली, (श्रीमत् भवनवासस्थाः) बड़ी विभूति को धारण करने वाले भवनवासी देवों के भवनों में स्थित (प्रतिमाः) जिन प्रतिमाएं (वन्दिताः) वन्दना को प्राप्त होती हुई (नः) हम सब की (परमां गति) उत्कृष्ट गति (विधेयासुः) करें अर्थात् उनकी वन्दना से हम सबको उत्कृष्ट गति की प्राप्ति हो। May the adoration of the images of Jina present in the celestial mansion dwellings of much glorious mansion dweller gods having magnificent bodies and lustreous by nature bless us with fifth grade of life. यावन्ति सन्ति लोकेऽस्मिननकतानि कतानि च। तानि सर्वाणि चैत्यांनि वन्दे भूयासि भूतये।।।8।। (अस्मिन् लोके) इस मध्य लोक तिर्यक् लोक में (यावन्ति) जितनी (अकृतानि) अकृत्रिम (च) और (कृत्रिम) कृत्रिम (चैत्यानि) प्रतिमाएं (सन्ति) हैं, (तानि सर्वाणि) उन सबको (भूयासि भूतये) अन्तरंग बहिरंग महाविभूति के लिये (वन्दे) नमस्कार करता हूँ। I respectfully pay obcisance to all the natural and artificial images of Jina existing in the whole of middle universe in order to attain the great internal and external glories/affluence of four infinites and samavasaran respectively. ये व्यन्तर-विमानेषु स्थेयांसः प्रतिमागृहाः। ते च संख्या-मतिक्रान्ताः सन्तु नो दोष-विच्छिदे।।1911 Gems of Jaina Wisdom-IX 43Page Navigation
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