Book Title: Gems Of Jaina Wisdom Author(s): Dashrath Jain, P C Jain Publisher: Jain GranthagarPage 47
________________ __(इति) इस प्रकार (स्तुति-पथ-अतीव) स्तुति मार्ग से अतीव (श्रीभृता) शोभा अथवा अन्तरंग-बहिरंग लक्ष्मी को धारण करने वाले (अर्हता) अरहन्त भगवान की (चैत्याना) प्रतिमाओं की (संकीर्तिः) सम्यक् स्तुति (मम) मेरे (सर्व-आसव-निरोधिनी) समस्त आस्रवों को रोकने वाली (हस्तु) हो। May the inflow of all karmas in my soul be stopped in concequence of the appropriate and right adoration/praise of the images of Arihantas; who posseses/uphold internal and external glories, which are beyond adoration. (not liable to be fully adored). अर्हन्-महा-नदस्य-त्रिभुवन-अव्यजन-तीर्थ-यात्रिक-दुरितप्रक्षालनैक-कारणमति-लौकिक-कुहक-तीर्थ-मुत्तम-तीर्थम् ।।23।। . (अर्हत् महानदस्य) अर्हन्त रूप महानद का (उत्तमतीर्थ) उत्कृष्ट तीर्थ-घाट (त्रिभुवन-भव्य-जन-तीर्थ-यात्रिकदुरित-प्रक्षालन-एककारणम्) तीन लोक के भव्य जीव रूप तीर्थ यात्रियों के पापों का प्रक्षालन करने, पापों का क्षय करने के लिए एक मुख्य कारण है। (अति-लौकिक कुहक तीर्थम्) जो लौकिक जनों के दम्भपूर्ण तीर्थों का अतिक्रान्त करने वाला है। The fine bank of the great river (current) of Arihaộtas washes/cleans the sins of pilgrims - Bhavyas' souls capable of attaining salvation of all the three universes. It is one of the chief cause of the elimination of sins. This holy place surpasses the holy places of pilgrimage of general public. लोकालोक-सुतत्त्व-प्रत्यव-बोधन-समर्थ-दिव्यज्ञानप्रत्यह-वहत्प्रवाहं व्रत-शीलामल-विशाल-कूल-द्वितयम् ।।24।। (लोक-अलोक-सुतत्त्व-प्रति-अवबोधन-समर्थ-दिव्यज्ञान-प्रत्यह-वहत्-प्रवाह) लोक और अलोक के समीचीन तत्त्वों का ज्ञान कराने में समर्थ दिव्यज्ञान का प्रवाह जिसमें निरन्तर बह रहा है (व्रत-शील-अमल-विशाल-कूल-द्वितय) व्रत और शील जिसके दो निर्मल विशाल तट है। This great river - where in constantly flows the current of divine knowledge is capable to provide the knowledge of proper elements of universe and non-universe. Th2 vows and Gems of Jaina Wisdom-IX 45Page Navigation
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