Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

Previous | Next

Page 49
________________ (व्यपगत-कषाय-फेन) जहाँ कषाय रूपी फेन/झाग बिल्कुल क्षपित हो गया है। (राग-द्वेषादि-दोष-शैवल-रहित), जो राग-द्वेष आदि दोष रूपी काई से रहित है, (अति-अस्त-मोह-कर्दम) जिसमें मोह रूपी कीचड़ अत्यन्त रूप से नष्ट हो चुकी है और (अतिदूर-निरस्त-मरण-मकर-प्रकरम्) जिससे मरण रूपी मगरमच्छों का समूह अत्यन्त दूर हटा दिया गया है। Where in the filth of passions is destroyed, which is devoid of the faults of attachment and aversion, where in the mud of delusion is finished and where no death takes place. ऋषि-वृषभ-स्तुति-मन्द्रोद्रेकित-निर्घोष-विविध-विहग-ध्वानम्। विविध-तपोनिधि-पुलिनंसासव-संवरण-निर्जरा-निःसवणम् ।।28।। (ऋषि-वृषभ-स्तुति-मन्द-उद्रेकित-निर्घोष-विविध-विहग-ध्वानम्) ऋषियों में श्रेष्ठ गणधरों की स्तुतियों का गंभीर तथा सबल शब्द ही जिसमें नाना प्रकार के पक्षियों का शब्द है। (विविध-तपोनिधि-पुलिन) अनेक प्रकार मुनिराज ही जिसमें पुलिन अर्थात् संसार-सागर से पार करने वाला पुल है और जो (सासव-संवरण-निर्जरानिःनवणम्) आसव का संवरण अर्थात् संवर व निर्जरा रूपी निःसवण/निर्झरणों अर्थात् जल के निकलने के स्थानों से सहित है। Afore mentioned great river, where in echos the deep and powerful sound/words of the eulogies being recited by the heads of saintly orders i.e. Ganadharaj and which is comparable to the chetterings of various kinds of birds; where great saints exist and work/behave like bridges enabling mundane souls to cross (the river) mundane existence and which has got such outlets where from karmic aggrigates are carried out due to stoppage of and sheddingoff of karmas. गणधर-चक्र-धरेन्द्र-प्रभृति-महा-भव्य-पुण्डरीकैः पुरुषैः। बहुभिः स्नातं भक्त्या कलि कलुष-मलापकर्षणार्थ-ममेयम्।।29 ।। (गणधर-चक्र-धरेन्द्र-प्रभृति-महा-भव्य-पुण्डरीकैः) गणधरदेव, चक्रवर्ती, इन्द्र आदि निकट भव्य पुरुषों में श्रेष्ठ (बहुभिः पुरुषैः) अनेकों पुरुषों ने (कलि-कलुष मल-अपकर्षणार्थ) पंचमकाल के पाप रूप मैल को दूर करने के लिए जिसमें (भक्त्या स्नात) भक्ति पूर्वक स्नान किया है तथा जो (अमेय) अति विशाल है। GemsofJaina Wisdom-IX.47

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180