Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 51
________________ are not redened in consiquence of yours victory on the fire of anger; which does not throw the arrows of the sidelog glasses taunts due to non-existence of faulty volitions and which looks ever smiling due to the absence of sorrows and egos. निराभरण-भासुरं विगत-राग-वेगोदयात्, निरम्बर-मनोहरं प्रकृति-रूप-निर्दोषतः। निरायुध-सुनिर्भयं विगत-हिंस्य-हिंसा-क्रमात्, निरामिष-सुतृप्ति-मद्-विविध-वेदनानां क्षयात् ।।32।। (विगत-राग-वेग-उदयात्) राग के उदय का वेग समाप्त हो जाने से जो (निराभरण-भासुर) आभूषण रहित होकर भी देदीप्यमान हैं, (प्रकृतिरूपनिर्दोषतः) प्रकृति रूप स्वाभाविक/यथाजात नग्न दिगम्बर मुद्रा को धारण करने से (निरम्बर-मनोहर) वस्त्र के बिना ही मनोहर हैं, (विगत-हिंस्य-हिंसा क्रमात्) हिंस्य और हिंसा का क्रम दूर हो जाने से जो (निरायुध-सुनिर्भय) अस्त्र-शस्त्र रहित निर्भय हैं और (विविध-वेदनानां- क्षयात) विविध प्रकार की वेदनाओं-क्षुधा, तृषा आदि के क्षय हो जाने से जो (निरामिष-सुतृप्तिमद्) आहार रहित होकर भी उत्तम तृप्ति को प्राप्त हैं। The Jinas who are lustrous because of the end of force/ speed of the fruitioning of attachment inspite of being ornamented; who are quiet beautiful because of their natural posture of nudity inspite of being undressed/without clothings; who are fearless because of the end of the order of killing and being killed (enjoying and being enjoyar) inspite of being unarmed and who are fully satisfy because of the end of the feelings of hunger, thirst etc., inspite of being/remaining without food. मितस्थित-नखांगजं गत - रजोमल - स्पर्शनम्, नवाम्बुरुह - चन्दन - प्रतिम - दिव्य - गन्धोदयम्। रवीन्दु - कुलिशादि - दिव्य - बहु - लक्षणालडूकृतम्, दिवाकर - सहस्त्र - भासुर - मपीक्षणानां प्रियम् ।।3।। (मित-स्थित-नखारड्ज) जिनके शरीर के नख और केश प्रमाण में स्थित हैं. अर्थात् अब केवलज्ञान होने के बाद वृद्धि को प्राप्त नहीं होते हैं, (गत-रजो-मल ....... ...... Gems of Jaina wisdom-IX .49

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