Book Title: Gems Of Jaina Wisdom Author(s): Dashrath Jain, P C Jain Publisher: Jain GranthagarPage 29
________________ नाभावः सिद्धि-रिष्टा न, निज गुण-हतिस्तत् तपोभिर्न युक्तेः, अस्त्यात्मानादि-बद्धः, स्व-कृतज्ञ-फल-भुक-तत्-क्षयान् मोक्षभागी। ज्ञाता दृष्टा स्वदेह-प्रमिति-रूपसमाहार-विस्तार-धर्मा, धौव्योत्पत्ति-व्ययात्मा, स्व-गुण-युत-इतो नान्यथा साध्य-सिद्धिः।।2।। (अभावः सिद्धिः इष्टा न) आत्मा का अभाव हो जाना सिद्धि इष्ट नहीं है। (निजगुणहतिः न) ज्ञान-दर्शन आदि स्वगुणों का नष्ट हो जाना सिद्धि नहीं है। (तत्) क्योंकि आत्मा कर्मों के क्षय हो जाने से (मोक्षमागी) मुक्ति को प्राप्त होता है, (ज्ञाता-दृष्टा) जानने-देखने स्वभाव वाला है, (स्वदेह-प्रमितिः) अपने शरीर प्रमाण है, (उपसमाहार विसतार धमा) संकोच विस्तार स्वभाव वाला है,. (ध्रौव्योत्पत्तिव्ययात्मा) उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप है तथा (स्वगुण युत) अपने आत्मीय गुणों से सहित है। (इतः अन्यथा) इससे भिन्न मान्यता वालों के (साध्यसिद्धिः न) साध्य की सिद्धि नहीं हो सकती/मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती। Salvation does not consist in the destruction of soul; similarly salvation does not consist in the elimination of the attributes of soul. In that case, it is not possible to adopt austarities (or resort to penance). The soul is bound with karmas since beginingless time. The soul is the enjoyer of the fruits of his auspicious and in-auspicious karmas. The soul attain salvation due to the destruction/elimination of all karmas. The soul by nature, is the knower and perceiver (viewer). It's size is equivalent to the size of body is in. It has got the capacity to be enlarged or narrowed. It's characterstics include generation, exhaustion and continuence and is equpped with its natural attributes. Those, who do not believe in such nature of soul; can never attain salvation. स त्वनर्बाह्य-हेतु-प्रभव-विमल-सद्दर्शन-ज्ञान-चर्यासंपद्धेति-प्रघात-क्षत दुरित-तया व्यज्ञिताचिन्त्य-सारैः। कैवल्यज्ञान-दृष्टि-प्रवर-सुख-महावीर्य सम्यक्त्व-लब्धिज्योति-र्वातायनादि-स्थिर-परम-गुणै-रद्भुतै-र्भासमानः।।3।। (तु) और (स) वह सिद्धात्मा (अत्तर्बाह्यहेतु-प्रभव-विमलसद्दर्शन-ज्ञान-चर्यासंपद्धेति-प्रघात-क्षत-दुरिततया) अन्तरंग-बहिरंग कारणों से उत्पन्न निर्मल सम्यक्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की प्राप्ति रूप शस्त्र के प्रबल प्रहार से पाप कर्मों के पूर्ण क्षय हो जाने से (व्यतिा अचिन्त्यसारैः) प्रकट हुए अचिन्त्य सार से युक्त Gems of Jaina Wisdom-IX • 27Page Navigation
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