Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 32
________________ reaches the top of the universe with in one time point and stay in the abode of Siddhas for ever. अन्याकाराप्ति हेतुर्न च भवति परो येन तेनाल्प - हीनः । प्रागात्मोपात्त - देह-प्रति- कृति - रुचिराकार एव ह्यमूर्तः । क्षुत् - तृष्णा-श्वास-कास- ज्वर - मरण - जरानिष्ट-योग-प्रमोहव्यापत्त्याद्युग्र - दुःख- प्रभव-भव - हतेः कोऽस्य सौख्यस्य माता । 16 ।। (च) और (येन) जिस कारण से उन सिद्ध भगवन्तों के (परः) दूसरा कोई (अन्य- आकार - आप्ति हेतुः न ) अन्य आकार की प्राप्ति का कारण नहीं है; (तेन) इस कारण से (अल्पहीनः ) किंचित् कम ( प्राक् - आत्मा - उपात्त - देह - प्रतिकृतिरुचिर-आकार एवं भवति) पूर्व में आत्मा के द्वारा ग्रहण किये शरीर के प्रतिबिम्ब समान सुन्दर आकार ही होता है। तथा वह (हि अमूर्तिः) निश्चय से अमूर्तिक होता हैं; और (क्षुत्तृष्णा-श्वास - कास - ज्वर - मरण - जरा - अनिष्ट-योग-प्रमोह - व्यापत्त्यादि उग्र दुःख - प्रभव-भवहतेः) भूख, प्यास, श्वास, खांसी, बुखार, मरण, बुढ़ापा, अनिष्ट संयोग, प्रकृष्ट मूर्च्छा, विशेष आपत्ति आदि भयंकर दुःखों की उत्पत्ति का कारणभूत संसार का अभाव होने से (अस्य) इन सिद्ध परमेष्ठी के ( सौख्यस्य) सुख का (माता) जानने वाला अथवा परिमाण (कः) कौन हो सकता है अर्थात् उनके सुख को कोई नहीं जान सकता, वह सुख अपरिमेय है । As there remains no cause of assuming any other shape or size. Therefor the shape and size of the salvated soul is just somewhat less than that of the body, which it was in before the attainment of salvation. Such shape and size of Siddha beautifully reflects the shape and size of the body which it was previously in. Substantially/realy it is formless. The eternal bliss of Siddhas - which is fully devoid of the pangs of hunger, thirst, respiration, cough, fever, death, oldage, undesirable accidents, refined delusion and special defroster etc.- which arise out of mundane existance, can not he known by any. It is boundless / unlimited. आत्मोपादान - सिद्धं स्वयं मतिशय वद् वीत - बाधं विशालम् । वृद्धि -हास - व्यपेतं, विषय - विरहितं निःप्रतिद्वन्द्व - भावम् । अन्य - द्रव्यानपेक्षं, निरुपमममितं शाश्वतं सर्व-कालम् । उत्कृष्टानन्त-सारं, परम सुखमतस्तस्य सिद्धस्य जातम् ।।7।। 30 Gems of Jaina Wisdom-IX

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