Book Title: Gems Of Jaina Wisdom Author(s): Dashrath Jain, P C Jain Publisher: Jain GranthagarPage 35
________________ perfect souls) are the lords/owners of the treasures of infinite attributes e.g. infinite perception, infinite knowledge, infinite prowess and infinite bliss. Siddhas have attained such supreme state because of relativism and various stand points austarities, restraints, knowledge, perception and right conduct. Their name and fame (reputation) is pervading all the four directions. They are the Gods of all gods of universe, they are eulogiesed/adored by Tirthankar-as even. All such Siddhas of all the three times (past, present and future) are worshippable by all. कृत्वा कायेत्सर्ग, चतु-रष्टदोष विरहितं सु परिशुद्धं। अतिभक्ति संप्रयुक्तो, यो बन्दते सो लघु लभते परम सुखम्।।10।। (यः) जो जीव (अतिभक्ति संप्रयुकतः) अत्यंत भक्ति से युक्त होकर (चतुरष्टदोष विरहित) 32 दोषों से रहित हो, (सुपरिशुद्ध) अत्यन्त निर्मल, अत्यंत विशुद्ध । (कायोत्सर्गं कृत्वा) कायोत्सर्ग करके (वंदते) वन्दना करता है, (स लघु लभते परमसुख) वह शीघ्र ही अतीन्द्रिय/मुक्ति सुख को प्राप्त करता है। The mundare soul capable to attain salvation-who after becoming free from all the thirty two faults and after becoming fully purified and cleansed, performs body mortification and pays regards to Siddhas with full devotion, soon attains the eternal trancendental bliss. इच्छामि भंते! सिद्धभक्ति - काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं सम्मणाणसम्मदंसण सम्मचरित्तजुत्ताणं, अट्ठ - विह कम्म-विप्प-मुक्काणं, अट्ठगुण-सम्पण्णाणं, उडलोय - मत्थयम्मि पइट्ठियाणं, तव - सिद्धाणं, णयसिद्धाणं, संजम - सिद्धाणं, चरित्त - सिद्धाणं - अतीताणागद-वट्टमाणकालत्तय - सिद्धाणं, सव्व - सिद्धाणं, सया णिच्चकालं, अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ बोहिलाहो, सुगइ - गमणं, समाहि - मरणं, जिण - गुण - सम्पत्ति होउ मज्झं। (भंते) हे भगवन्! (सिद्धभक्ति काउस्सग्गो कओ) सिद्धभक्ति करके जो कायोत्सर्ग किया (तस्स आलोचेउं इच्छामि) उसमें लगे दोषों की आलोचना करने की मैं इच्छा करता हूँ। (सम्मणाण - सम्मदंसण - सम्मचरित्त जुत्ताण) जो सिद्ध भगवान सम्यक् ज्ञान, सम्यक्दर्शन और सम्यक्चारित्र से युक्त हैं, (अट्ठविह - कम्म - मुक्काण) आठ Gems of Jaina Wisdom-IX 33Page Navigation
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