Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 30
________________ ( कैवल्यज्ञान -दृष्टि-प्रवर सुख - महावीर्य - सम्यक्त्व - लब्धि ज्योंतिर्वातायन आदि स्थिर परमगुणैः अभ्दुतैः) केवलज्ञान, केवलदर्शन, अनन्त सुख, अनन्त वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक दान, लाभ, भोग, उपभोग रूप नव लब्धियों, भामण्डल, चँवर, सिंहासन, छत्र आदि आश्चर्यकारी श्रेष्ठ गुणों से ( भासमानः) शोभायमान है । And the salvated bodyless pure and perfect soul has been purified by internal and external causes in consiquence upon the complete elimination of all karmas due to the powerful attack by the weapons of right faith, righ knowledge and right conduct resulting in unthinkable (unimaginable) object. The salvated soul is adorned with nine attainments i.e. omniscience, omniperception, infinite bliss, infinite strength, destructive righteousness, destructive charity, destructive gain, destructive enjoyment, destructive re-enjoyments together with other wonderful/excellent attributes. जानन् पश्यन् समस्तं, सम-मनुपरतं संप्रतृत्यन् वितन्वन्, धुन्वन् ध्वान्तं नितान्तं निचित- मनुसभं प्रीणयन्नीशभावम् । कुर्वन् सर्व-प्रजाना-मपर-मभिभवन् ज्योति-रात्मानमात्मा, आत्मन्येवात्मानासौ क्षण - मुपजनयन् - सत्-स्वयंभूः प्रवृत्तः ।। 4 ।। " (असौ स्वयंभू आत्मा) वे स्वयंभू अरहंत परमात्मा (समस्त ) सम्पूर्ण लोक- अलोक को (सम) युगपत् (जानन् पश्चन् ) जानते देखते हुए, ( अन् उपरत) सतत / बाधा रहित (धम्प्रतृत्यन्) आत्मीक सुख से अच्छी तरह तृप्त होते हुए, (वितन्वन्) ज्ञान को सर्व लोक में विस्तृत करते हुए, (नितान्तं निचित) अनादि काल से संचित ( ध्वान्त) मोह रूपी अंधकार को (धुन्वन्) नष्ट करते हुए, (अनुसभं, समवशरण ) सभा में (प्रीणयन्) सबको सन्तुष्ट करते हुए, ( सर्वप्राणिना) तीन लोक के समस्त प्राणियों के (ईश भाव ) ईश्वरत्व/ स्वामीपने को (कुर्वन्) करते हुए, (अपरं ज्योतिः अभिभवन्) सूर्य-चन्द्र-नक्षत्रादि की अन्य ज्योति को अपनी ज्योति से पराभूत करते हुए और (आत्मानम्) अपनी आत्मा का ( क्षण) प्रतिक्षण (आत्मनि) अपनी आत्मा में (एव) ही (आत्मना ) आत्मा के द्वारा ( उपजनयन) निमग्न करते हुए, (सत् प्रवृतः) समीचीन रूप में प्रवृत हुए थे । Such self begotten (swayambhoo) soul knows and perceives the whole universe simultaneously and constantly fully satisfied by self bliss, making knowledge co-extensive of universe, destroying the darkness of delusion accumulated 28 Gems of Jaina Wisdom-IX

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