Book Title: Gems Of Jaina Wisdom Author(s): Dashrath Jain, P C Jain Publisher: Jain GranthagarPage 16
________________ I hereby seek shelter of all the natural temples of Jina-which are magnificient, glamorous, glorious and flawless, which exist since beginningless time, which are auspicious to all living beings, which are like incomperable pilgrims centers, where in religious ceremonies constantly take place, made of gems and the ornaments of all the three universes. श्रीमत्परम- गम्भीर, स्याद्वादामोघ - लाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य, शासनं जिनशासनम् ।। 3 ।। ( श्रीमत् ) अन्तरंग - बहिरंग लक्ष्मी से पूर्ण (परम - गंभीर ) अत्यन्त गंभीर (स्याद्वाद - अमोघ लाञ्छनम् ) स्याद्वाद जिसका सार्थक / सफल चिन्ह है एवं (त्रैलोक्यनाथस्य शासनम्) तीन लोक के स्वामी - चक्रवर्ती आदि पर जो शासन करने वाला है ऐसा (जिनशासन) जिनशासन ( जीयात्) जयवन्त रहे । May the rule of Jina-which is full of internal and external wealth, extremely deep, relativism is whose appropriate emblem and which governed the lord of three universes, wheel wielding emperors etc. be ever victorius. श्री - मुखालोकनादेव, श्री मुखालोकनं भवेत् । आलोकन-विहीनस्य, तत् सुखावाप्तयः कुतः ।।4।। (श्रीमुखालोकनात् एव) वीतरागता रूप लक्ष्मी से युक्त जिनेन्द्र देव के मुख के देखने से ही ( श्रीमुख अलोकन) मुक्तिलक्ष्मी के मुख का दर्शन / अवलोकन ( भवेत् ) होता है । (आलोकनविहीनस्य) जिनेन्द्र देव के दर्शन से रहित जीव को (तत्सुख) वह सुख (कुतः) कैसे (अवाप्तयः) प्राप्त हो सकता है ? One can behold Goddess of salvation by beholding the dispationate / non-attached shri Jinendra dev. On the contrary, persons who do not behold/view shri Jinendra dev are unable to behold/view the Goddess of salvation. अद्याभवत्-सफलता नयन-द्वयस्य, देव ! त्वदीय-चरणाम्बुज-वीक्षणेन । अद्य - त्रिलोक-तिलक ! प्रतिभासते मे, संसार - वारिधि-रयं चुलुक - प्रमाणः ।।5।। 14 • Gems of Jaina Wisdom-IXPage Navigation
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