Book Title: Gems Of Jaina Wisdom Author(s): Dashrath Jain, P C Jain Publisher: Jain GranthagarPage 20
________________ Oh God - the glamrous (chunāmani) of all the living beings of all the three universes may you be ever victorious, ever victorious, ever victorious. Oh Bhagwān! you are the sun flowering the lotuses of all the mundane souls of three universes - you please destroy, the darkness of our minds and hearts. Oh lord! you please provide us the indestructible and everlasting peace, oh lonely friend of universe, there is no other saviour, than you. चित्तते मुखे शिरसि पाणि-पयोज-युग्मे, भक्तिं स्तुतिविनति-मञ्जलि-मञ्जसैव। चेक्रीयते चरिकरीति चरीकरीति, यश्चर्करीति तव देव! स एव धन्यः।।13।। (देव) हे स्वामिन ! (यः) जो (अजसा एव) यथार्थ रूप से (चित्ते) मन में (तव) आपकी (भक्ति) भक्ति को (चेक्रीयते) करता है। (मुखे तव स्तुति) मुख में आपकी स्तुति को (चरिकरीति) करता है, (शिरसि तव विनति) शिर पर आपकी विनती को (चरीकरीति) करता है, (पाणिपयोजयुग्मे) हस्तकमल युगल में (तव अञ्जलि चर्करीति) आपके लिये अञ्जलिबद्ध करता है; (स एव धन्यः) वही धन्य है। Oh God! he who with his hands folded like a closed lotus in devotion before you with pure mind and heart, who eulogises you with utterances, and who bows down and pay obeisance to your lotus feet with his body - is really · blessed. जन्मोन्मायं भजतु भवतः पाद-पद्यं न लभ्यम्, तच्चेत्-स्वैरं चरतु न च दुर्देवतां सेवतां सः। अश्नात्यत्रं यदिह सुलभं दुर्लभं चेनमुधास्ते, क्षुद्-व्यावृत्यै कवलयति कः कालकूटं बुभुक्षुः।।14।। यदि किसी जीव को (जन्म-उन्माज्य) अपने संसार भ्रमण से छूटना है/जन्म का मार्जन-निवारण करना है, तो (सः) वह (भवतः पाद पद्यं भजतु) आपके चरण-कमलों की सेवा करे। (चेत् तत् न लभ्य) यदि आपके चरण-कमल प्राप्त न हो सकें, तो (स्वैरं चरतु) अपनी इच्छानुसार आचरण करे; परन्तु (दुर्देवतां न 18 Gems of Jaina Wisdom-IXPage Navigation
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