Book Title: Gems Of Jaina Wisdom
Author(s): Dashrath Jain, P C Jain
Publisher: Jain Granthagar

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Page 17
________________ (देव!) हे वीतराग देव! (अद्य) आज (त्वदीय-चरणाम्बुज-वीक्षणेन) आपके चरण-कमलों को देखने से/दर्शन से (में) मेरे (नयनद्वयस्य) दोनों नयनों की (सफलता) सार्थकता (अभवत्) हो गई (त्रिलोकतिलक) है। तीन लोकों के तिलक स्वरूप भगवन्! (अद्य) आज (मे) मुझे (अयं संसार-वारिधिः) यह संसार सागर (चुलुक प्रमाणः) चुल्लू भर जल के बराबर (प्रतिभासते) जान पड़ता है। Oh non-attached Lord! my both eyes have become fruitful by viewing, beholding your lotus feet on forehead of three universes. O lord! today the ocean of mundane existence appear to me to be a handful of water. अद्य मे क्षालितं गात्रं नेत्रे च विमलीकृते। स्नातोऽहं धर्म-तीर्थेषु जिनेन्द्र! तव दर्शनात्।।6।। (जिनेन्द्र!) हे जिनेन्द्र भगवान् ! (तव दर्शनात्) आपके दर्शन से (अद्य मे गात्रं क्षालित) आज मेरा शरीर प्रक्षालित हो गया, (नेत्रे विमलीकृते) दोनों नेत्र निर्मल हो गये (च) और (अह) मैंने (धर्मतीर्थेषु) धर्म तीर्थों में (स्नातः) स्नान कर लिया। Oh Jinendra dev! today my body has been washed and purified by viewing you. My both eyes have been cleansed and I have taken bath in all the holy & pilgrim centers. नमो नमः सत्त्व-हितंकराय, वीराय भव्यांम्बुज-भास्कराय। अनन्त-लोकाय सुरार्चिताय, देवाधि-देवाय नमो जिनाय।।7।। (सत्वाहितंकराय) प्राणीमात्र का हित करने वाले, (भव्य-अम्बुज-भास्कराय) भव्य रूपी कमलों को सूर्य रूप (वीराय) वीर जिन के लिये (नमः नमः) बार-बार नमस्कार हो। (अनन्त लोकाय) अनन्त पदार्थों को देखने वाले, (सुर अर्चिताय) देवों के द्वारा पूजित, (देवाधिदेवाय) देवों के भी देव (जिनाय) जिनेन्द्र भगवान् के लिये (नमः) नमस्कार हो। I hereby repeatedly bow down and pay obeisance to lord Mahāvir, who is benevolent to all living beings and who is like sun, which blossom the lotus hearts of the mundane souls capable to attain salvation. I pay obeisance to shri Jinendra dev, who is omniscient and directly who perceive the endless objects of universe, who is worshipped by lords of celestial beings and is therefore the God of gods. Gems of Jaina Wisdom-IX.15

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