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१८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फुलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ
मेरे प्रेरक
● पं० बालचन्द्र शास्त्री, हैदराबाद
आ० पंडित जीसे लम्बे समयसे मेरा निकटतम सम्बन्ध रहा । वे सुयोग्य विद्वान्, लेखक, वक्ता, स्वतन्त्र विचारक और ग्रन्थ सम्पादक हैं । सिद्धान्त ग्रन्थोंके सम्पादनमें उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है । समाज सेवाका भी काफी कार्य किया है । सन् १९२७-२८ में मैं श्री स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी में विद्याध्ययन कर रहा था, तब आप यहाँ धर्माध्यापक थे । आप आरम्भसे ही स्वतंत्र वृत्तिके स्वाभिमानी विद्वान् रहे हैं । एक घटना वश आपने विद्यालयसे त्यागपत्र दे दिया और 'प्रमेयरत्नमाला' के सटिप्पण सम्पादनमें लग गये ।
अक्टूबर १९४० की बात है । पंडितजी अमरावतीमें डॉ० हीरालालजीके साथ षट्खण्डागमका सम्पादन कार्य कर रहे थे। पं० हीरालालजी सिद्धान्तशास्त्री भी इसमें सहयोग कर रहे थे । मुझे भी यहाँ बुलाया गया । तिलोयपण्णत्तिके सम्पादन कार्यमें सहयोग हेतु डॉ० हीरालालजीने मुझसे कहा । मैं संकोच कर रहा था क्योंकि मैं प्राकृतसे परिचित नहीं था, क्योंकि जैन विद्यालयोंमें संस्कृत छाया के आधारपर प्राकृतके जैन ग्रन्थोंके पढ़नेपढ़ानेकी पद्धति रही है । फिर भी पंडितजीने मुझे साहस और मार्गदर्शन दिया ।
सिद्धान्त ग्रन्थोंके सम्पादन कालकी अनेक बातें हैं, जिन्हें लिखनेके लिए काफी स्थान चाहिए। मेरी हार्दिक कामना है कि वे दीर्घायुष्य होकर सार्वजनिक कार्यो को करते रहें ।
अपूर्व श्रुताधक
• डॉ० पन्नालाल साहित्याचार्य, सागर
सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्रजी शास्त्री आगमके विशिष्ट ज्ञाता हैं । उन्होंने तत्तत्प्रकरणोंके विशेषार्थं लिखकर विषयको स्पष्ट किया है। सच पूछा जाय तो आगम ग्रन्थोंका उद्धार आपकी प्रतिभाका ही सुफल है । तत्त्वका निर्णय कर उसे आप निर्भीकतासे प्रकट करते हैं। एक बार मैं आपके साथ बाहुबली (कुंभोज) गया था । पूज्य आचार्य समन्तभद्रजी महाराजको आपने ग्रन्थ भेंट किया । प्रत्युत्तरमें आचार्य महाराजने शिरपर पीछी रखते हुए आशीर्वाद दिया कि आपको श्रुतकेवली बनना है । इन आगम ग्रन्थोंका उद्धार आपकी हो मनीषाके बलपर हुआ है और आगे भी होगा ।
इस अभिनन्दनके प्रसङ्गपर मैं पण्डितजीकी श्रुतसेवाका मनसा, वाचा, कर्मणा अभिनन्दन करता हूँ ।
कर्मठ स्वाभिमानी विद्वान्
• डॉ० भागचंद्र जैन भास्कर, जयपुर
श्रद्धेय पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीका समग्र जीवन पुरुषार्थ, आत्मविश्वास, सजगता, एकाग्रता, गंभीरता, व्यहारकुशलता और मानवीय गुणों के साथ बहुमुखी विकासका प्रतीक रहा है । उनकी संवेदनशीलता और निर्भीकताने एक कर्मठ स्वाभिमानी विद्वान्, पंडितके रूपमें प्रतिष्ठा अर्जित की है । आपका सीधा-सादा हँसमुख सादगीभरा जीवन आपकी कर्मशीलता, शालीन जीवटता और लक्ष्यनिष्ठताको अभिव्यक्त करता है ।
श्री पंडित जी कर्मसिद्धान्त के उच्चकोटि के सन्मान्य विद्वान् हैं । अदम्य उत्साह, सहिष्णुता, अनुभव, ज्ञान, मनोबल और व्यापक दृष्टिके सायेमें विहित आपके शैक्षणिक और सामाजिक उदात्त कार्य एक विशेष सामयिक उत्तरदायित्व भावनाओंसे ओतप्रोत रहे हैं । सुशील, सहृदय और कर्मठ समाजसेवकके रूपमें आपने युगबोधको नये आयामोंसे भरा है । आपकी सिद्धान्तनिष्ठा और सुसंगत रचनात्मक दृष्टिकोण श्लाघनीय है ।
मैं अपनी शुभकामना व्यक्त करता हूँ कि आप दीर्घकाल तक जैन साहित्यकी सेवा करते रहें ।
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