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विषय
धर्मध्यान
१९ द्वार भावना अदि
४ मावना
५ ज्ञान-भावना: नित्य अभ्यास, मनोधारण विशुद्धि, भवनिर्वेद,
विषयानुक्रमः
ज्ञानगुण-ज्ञातसार जीव व अजीव के गुणपर्याय ज्ञान-गुणज्ञातसागर का दूसरा
अर्थ दर्शन भवनाः त्याज्य ५ दोषः शंका० कांक्षा० विचिकित्सा० प्रशंसा० संस्तव० ३६३ पाखण्डी
G
प्रशमादि ५ गुण चारित्र भावना
पृष्ठ विषय
८२ श्रुतधर्म चारित्रधर्म
८४
वेगग्य भावना
सुविदित जगत स्वभाव- निस्स
.८६
८८
प्रश्रमादि ५ गुणः प्रश्रम० स्थि रताः प्रमावना० आयतन सेवा. भक्ति
.९०
१२
६८
ध्यान के लिए आलंबन
१०६
गता
१०८
निर्भयता निराशंसता क्रोधादिरहितता, उनके उपाय ध्यान के लिए देश (स्थान) ११५ कृतयोगी सत्त्वभावना -सूत्रतप११७ काय त्राग् मनोयोगमय ध्यान १२०
१२८
१३०
धर्म-शुक्ल ध्यान में क्रम जिनमूर्ति कैसी चाहिए ? १३१
ध्यान का विषय ४ धर्मध्यान के
ध्येय आज्ञा, अपाय, विपाक,
संस्थान
(१) आज्ञाविचय
सुनिपुण आज्ञा द्रव्यार्थादेश
१०० १०१ | महत्स्थ - महास्थ १०३ | ४ अनुयोगद्धार १०५ | महानुभाव
भूतहिता भूतभावना 'अणग्ध' के २ अर्थ के अनन्त
अर्थ
एक सूत्र अमिय = अमृत - पथ्य-सजीव अजित : 'महत्थ'=महार्थ -
[१३
महाविषय : निरवद्य
| अनिपुण दुर्ज्ञेय
सप्तभंगी
द्रव्यादि ४ प्रमाण
पृष्ठ
१२६
१२२
ध्यान का काल ध्यान का आसन
१२३
योग समाधान मुख्य नियामक १२१ | प्रदेश दृष्टान्त
१३३
१३६
१३७
१३८
६३६
१४०
१४२
39
१४३
१४४
१४६
१४७
१४८
१४९
१५०
३ भावप्रमाण, गुण-नयसंख्या प्रमाण
१५२
प्रत्यक्ष, अनुमान - उपमान-आगम " दर्शन चारित्रगुण प्रमाण नयप्रमाणः प्रस्थक- वसति
१५३
१५४