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+ ध्यान शतक
विषयानुक्रम विषय
पृष्ठ | विषय ग्रन्थकार
१ मोक्ष की इच्छा में नियाणा टीकाकार
| क्यों नहि ? ध्यान क्या ?
| आर्तध्यान संसारबीज रागआत्म स्वरूप शुद्ध-विकृत
द्वेष-मोह
४४ ३चित्त भावना० अनुपेक्षा.चिंता.११
आर्तध्यान में लेश्याः शुभयोग योग व निरोध
का महत्त्व०
४७ ८ पुद्गल वर्गणाएं
आर्तध्यान के लक्षणः भाक्रन्द, योग-निरोध की आवश्यकता १५
दीन० गुस्सा व रोष० स्वकार्य ध्यानांतर : ध्यानधारा ध्यान के विषय
की निन्दा० वैभव पर भाश्चर्य. ४ ध्याने
इच्छा० मिलने पर खुशी० आर्त रौद्र०
वैभव के उद्यम विषयों पर धमं० शुक्ल०
गृद्धि० शुद्ध धर्म से परामुख०
प्रमाद० जिन वचन में । ४ आतध्यान अनिष्ट संयोग० रोगादि वेदना०
लापरवाही. इष्टवियोग० नियाणा
आर्तध्यान का स्वामी तीनों काल का आत.
रौद्रध्यान ४ (२) वेदनानुबन्धी
१ हिंसानुबन्धी इष्ट संयोग-अवियोगानुबंधी
२ मृषानुबन्धी
३ अमत्य वचन : भभूतोदानियाणाः सुखामास
वन भूतनिन्हव० भर्थान्तर० ६४ आतध्यानका फल
३स्तेयानुबन्धी मुनिको आत नहीं ?
४ संरक्षणानुबन्धी मुनि कौन ?
अनुमोदन से रौद्रध्यान दवा करने में उद्देश्य
स्वामी कौन ? आलंबन प्रशस्त
फल व लेश्या तपस्या से दुःखवियोग के रौद्र० के लक्षण उत्सन्न चिंतन में आत क्यों नहीं ? ३९ | बहुल नानाविध भामरण. ७८