Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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गांधी चिन्तन की सार्थकता
हो सकती हैं। मिसाल के तौर पर वह बिजली द्वारा संचालित मझौली शिल्पविधियों के पक्ष में थे और बिजली के उत्पादन के लिए बड़ी मशीनों के प्रयोग को उचित समझते थे । इस तरह जनता के हित की पोषक मशीनों का प्रयोग ही वह ठीक समझते थे ।
अहिंसा के उपासक गांधीजी अहिंसा के आधार पर आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करना चाहते थे । वह जानते थे कि प्रत्येक व्यवसाय में थोड़ी बहुत हिंसा होती ही है । पर उनके विचार में वह व्यवसाय अहिंसात्मक है जो 'बुनियादी तौर पर हिंसा से मुक्त हो, और दूसरों के शोषण और ईर्ष्या से लिप्त न हो ।' उनकी धारणा थी कि जहां कारीगरों द्वारा स्वचलित दस्तकारियां शोषण और दासता से मुक्त होती है, वहां पूंजीपतियों द्वारा संचालित बड़े बड़े उद्योगों द्वारा किसी न किसी मात्रा में श्रमिकों का शोषण होता ही है । उनके विचार में आत्म-निर्भर गांवों के आधार पर ही अहिंसात्मक आर्थिक व्यवस्था का निर्माण हो सकता है ।
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इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए गांधीजी व्यक्तिगत होड़ और लाभ के स्थान पर अहिंसा, सामाजिक न्याय, जनकल्याण तथा ग्रामीण आत्मनिर्भरता के आधार पर एक ऐसी विकेन्द्रित आर्थिक व्यवस्था प्रतिष्ठित करना चाहते थे जो शोषण और आर्थिक आधिपत्य के दोषों से मुक्त हो, और जिसमें सब लोगों को भरपूर मानवोचित रोजगार तथा निर्वाह योग्य रोजी प्राप्त हो सके । और सब सुख से समता और स्वतन्त्रता का जीवन बिताते हुए अपनी सांस्कृतिक और नैतिक अर्थात् आध्यात्मिक उन्नति कर सकें । यह व्यवस्था स्वतन्त्र सहकारिता पर अवलम्बित ग्रामीण अर्थतन्त्र पर आधारित होगी, और इसमें बड़े-बड़े उद्योगों का सीमित तथा गौण स्थान होगा ।
बड़े-बड़े उद्योगों में लगी सम्पत्ति राष्ट्र की सम्पति है । इस पर पूजीपतियों का एकाधिकार अनैतिक है । उसका राष्ट्रीयकरण किया जा सकता है । पर गांधीजी पूंजीपतियों की इच्छा के विरुद्ध उसका राष्ट्रीयकरण करने के बजाय उनकी मानसिक भावनाओं में आवश्यक परिवर्तन करके उनकी रजामन्दी से उनकी मिल्कियत के दावे को ट्रस्टीशिप अर्थात् न्यासिता में बदल देना चाहते हैं । वह चाहते हैं कि पूंजीपति लोग एक ट्रस्टी अर्थात् न्यासी की हैसियत से श्रमिकों तथा समाज के हित में अपने बड़े-बड़े उद्योगों का संचालन और प्रबन्ध करें, अपने परिवार के भरण पोषण के लिए उचित कमीसन लेकर बाकी आमदनी समाज और श्रमिकों
परिसंवाद - ३
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