Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन परंपरा में नवीन दर्शनों की सम्भावनाएं
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सच तो यह है कि विज्ञान की महान खोजें जिनके द्वारा व्यावहारिक प्रयोग संभव हुआ है, और जिन्हें बड़ा महत्त्व दिया जाता है, सामान्यतः ऐसे व्यक्तियों द्वारा की गयी हैं जिनकी रुचि व्यावहारिक प्रयोग में नहीं थी । किन्तु वे केवल वैज्ञानिक रुचि से प्रेरित थे और जिनमें ज्ञान की रुवि ज्ञान के लिये ही थी । यही सैद्धान्तिक विज्ञान का स्वरूप दर्शनशास्त्र से सम्बन्धित है और इस प्रकार सबसे अधिक व्यावहारिक बनने के इच्छुक जो हमेशा व्यावहारिक प्रयोग पर चिन्तन किया करते हैं, वे भी व्यावहारिक मनोभाव में नहीं रहते। कभी-कभी हम भी 'ज्ञान को ज्ञान के लिए' पाने के इच्छुक होते हैं, तब हम विज्ञान के व्यापक अर्थ में, यथार्थ ज्ञान के प्रेम के अर्थ में उसकी ओर मुड़ते हैं । कभी-कभी हम आश्चर्य के मनोभाव में रहते हैं और सोचते हैं कि क्या जगत का कोई अर्थ उद्देश्य या मूल्य है, तब हम दर्शनशास्त्र की ओर मुड़ते हैं या हम सन्देह या निराशा के मनोभावों में रहते हैं और उन उलझनों एवं चिन्ताओं के बोझ से दबे होते हैं तब हम धर्म की ओर मुड़ते हैं । "
इस प्रकार दर्शन के दो दायाद दिखाई पड़ रहे हैं दोनों के साथ दर्शन अपना सम्बन्ध बना चुका है और दोनों ने उसे अपने-अपने अन्दर लाकर उसके स्वरूप को विकृत किया है। एक ने धार्मिक हठवादिता एवं आस्था दी तो दूसरे ने नास्तिकता वाद तथा निराशा । इस बीच मनुष्य बेचारा बना हुआ है । इसलिये अब दर्शन को दोनों दायादों से पिण्ड छुड़ाकर उनपर प्रभावी बन कर अपने को स्वतन्त्र रखना है। तथा विवेकपूर्वक मानव हित, सत्य तथा जिज्ञासा का चिन्तन करते हुए अपना स्वतन्त्र स्थान बनाना है ताकि उसमें न हठवादिता आये और न नास्तिकता ।
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१. दर्शनशास्त्र का परिचय पृ० ३३ टी० डब्ल्यू पैट्रिक |
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परिसंवाद - ३
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